गुरुवार, 6 जुलाई 2017

Humayun's tomb हुमायूँ का मकबरा, मुगलों का कब्रिस्तान



कुतुबमीनार उर्फ विष्णु स्तंभ की सैर करने के बाद हमारा काफिला “मुगलों का कब्रिस्तान” उर्फ हुमायूँ का मकबरे पहुँच चुका है। इस जगह की सैर कराने से पहले आपको इस स्थल की राम कहानी बता देता हूँ। शुरुआत करता हूँ, यहाँ पहुँचा कैसे जाये? यहाँ पहुँचना बहुत ही आसान है। दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के बिल्कुल पास में ही है। निजामुद्दीन से यहाँ पहुँचने के लिये पैदल दूरी ही है जो आसानी से टहलते हुए पार की जा सकती है। यहाँ से दिल्ली का चिडियाघर (Zoological park of Delhi) भी ज्यादा दूर नहीं रह जाता है। दोनों के बीच में सिर्फ एक किमी का ही फासला रह जाता है। यहाँ का नजदीकी मैट्रो स्टेशन जवाहर लाल नेहरु मैट्रो स्टेशन है। हम कुतुबमीनार से जिस बस में सवार हुए थे वह बस मोरीगेट जा रही थी जो इसके सामने से होकर जाती है। सडक पार करते ही पूर्व दिशा की ओर एक लाल रंग का बोर्ड दिखाई देता है। जिस पर हुमायूँ का मकबरा लिखा हुआ था। यह मुगल परिवार का एक शाही कब्रिस्तान (मुर्दाघर अलग चीज है) है। बोले तो (मुगलों का शाही कब्रिस्तान)। इस ईमारत में मुगलों के परिवार के सैकडों सदस्यों की कब्र बनी हुई है। इसलिये मैंने इसके लिये शाही कब्रिस्तान शब्द का उपयोग किया है।
Humayun’s Tomb हुमायूँ का मकबरा (मुगलों का कब्रिस्तान graveyard of Mugal)


मैं भी इस जगह इससे पहले कभी नहीं आया था। विशाल बोला, “संदीप भाई क्या बात करते हो?” इतने सालों से आप दिल्ली में रह रहे हो और आप कहते हो कि आपने यह जगह नहीं देखी है। “हाँ विशाल भाई, सच कह रहा हूँ मुझे कब्रों-सब्रों कब्रिस्तान जैसी जगहों में घूमने की कोई इच्छा नहीं होती है? वो तो ब्लॉगिंग में लिखने के लिये इस जगह के फोटो चाहिए थे इसलिये मैं यहाँ आ गया नहीं तो गडे मुर्दों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। विशाल बोला तो ताजमहल के बारे में आपकी क्या राय है? मैंने कहा, “देख भाई, राय तो ताजमहल के बारे में भी मेरी ऐसी ही है। वो अलग बात है कि ताजमहल राजा मानसिंह के परिवार का निजी शिवालय तेजो महालय हुआ करता था जिसे बाद में मुगलों ने एक मकबरा बना डाला। ताजमहल के बारे में मैं एक लेख लिख चुका हूँ जिसमें अधिकतर जानकारी दे चुका हूँ इसलिये यहाँ ताजमहल का ज्यादा जिक्र करना बेकार है।
इस मकबरे के इतिहास के बारे में, History of humayun’s Tomb
दिल्ली में एक सडक सीधे मथुरा से आती है जिसे मथुरा रोड के नाम से जाना जाता है। वो अलग बात है कि इस सडक पर बाहर से आने वाले लोग दिल्ली में घुसने के बाद ज्यादा दूर तक नहीं जाते है। रिंग रोड आते ही इसे छोड देते है। कारण, भयंकर भीडभाड वाले इलाके से होकर यह सडक गुजरती है। इस मथुरा रोड को लोदी रोड नामक एक अन्य सडक जिस जगह मिलती है। ठीक उसी के सामने यह मकबरा है। हुमायूँ की बीबी हाजी बेगम ने इस मकबरों को बनवाने में मुख्य भूमिका निभायी थी। इस ऐतिहासिक ईमारत में प्रवेश करने के लिये 10 रु का प्रवेश शुल्क भी अदा करना पडता है। फोटोग्राफी के लिये शायद कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। वैसे भी टिकट विशाल ने लिये थे। मैंने तो कोई पैसा नहीं दिया। कुछ स्थलों पर फोटोग्राफी का शुल्क नहीं लेते है लेकिन उनमें वीडियों लेने पर शुल्क लिया जाता है।
हुमायूँ की मौत 20 जनवरी 1556 को हुई, ऐसा इतिहार में बताया जाता है। मुगलों में लाशों की बडी दुर्गति होती थी। पहली बार यहाँ गाड, दूजी बार वहाँ गाड, तीजी बार कही और गाड, ये उखाड पाड, गाडा-गाडी का खेल बहुत बार देखा गया है। हुमायूँ को पहली बार दिल्ली के पुराने किले में दफनाया गया था। उसी दौरान दिल्ली पर हिन्दू राजा हेमू ने कब्जा कर लिया। मुगलों को दिल्ली व आगरा छोडकर भागना पडा। मुगलों का डर देखिये कि कही हिन्दू राजा मुगलों की कब्र को उखाड न फेंके। इसलिये बचे-खुचे मुगल हुमायूँ की कब्र को पंजाब ले गये। हुमायूँ के निर्दयी व क्रूर पुत्र अकबर ने भारत में बहुत चालाकी के साथ शासन किया था। हुमायूँ की मौत के 9 साल बाद यह मकबरा बन सका। इस मकबरे के निर्माण में उस समय 15,00,000/- रुपये खर्चा हुआ था। सूफी सन्त हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह भी इसके पास में ही है। अन्तिम मुगल राजा बहादुरशाह जफर 1857 की लडाई अंग्रेजों से हार गये थे। अंग्रेजों के हाथों पकडे जाने से पहले यहाँ छिपे हुए थे। उनके साथ उनकी तीन बेगमें भी थी। इन सभी को पकडकर अंग्रेज बर्मा, म्यनमार की राजधानी रंगून ले गये। रंगून में ही बहादुरशाह जफर की कब्र भी है।
इसके एकदम बराबर में “बताशे वाला मकबरा” भी बताया जाता है। तैमूर लंग मुगल वंश का पूर्वज था जिसकी कब्र जिसकी कब्र समरकंद, उजबेकिस्तान में है। हुमायूँ की कई पत्नियाँ थी। उन्ही में से एक बेगा बेगम ने इसे बनवाने में अपनी सारी दौलत और जीवन लगा दिया। बेगम ने परिशयन / फारसी वास्तुकार शिल्पी मिरक मिर्जा घियास को हेरात शहर आज के उज्बेकिस्तान से इसका निर्माण कराने के लिये बुलाया था। अकबर की जीवनी आइने अकबरी में भी इस मकबरे के बनने की घटना बतायी गयी है। मुगल परिवार में दो-तीन ही बादशाह ऐसे हुए है जिनकी कब्रे इस परिसर में नहीं है। एक तो अकबर ही है जिसकी कब्र आगरा-मथुरा-दिल्ली मुख्य सडक मार्ग पर स्थिय सिकंदरा पर बनी हुई है तो दूसरी औरंगजेब की कब्र है। जो महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद जिले में बनी हुई है। ये दोनों ही राजा अपने समय के बेहद ही चतुर, अत्याचारी व क्रूर शासक रहे थे। निर्दयीपन के कारण ये दोनों लम्बे समय तक भारत के बडे हिस्से पर राज करने में सफल भी रहे थे। अकबर का दादा बाबर जो अफगानिस्तान के काबुल में मारा गया था उसकी कब्र काबुल में है। जिसका नाम बाग ए बाबर रखा गया। यहाँ इन्दिरा गाँधी एक बार गयी थी और कहते है कि इन्दिरा यहाँ जाकर बहुत रोयी थी। हो सकता है बाबर इन्दिरा का पूर्वज रहा हो, यह बात मैं सुनी हुई नहीं बता रहा हूँ। उस समय के विदेश मन्त्री नटवर सिंह ने यह रहस्य अपनी पुस्तक में खोला था।
इस मकबरे के परिसर में टिकट घर से आगे बढते ही हरियाली से भरा लम्बा गलियारा दिखाई दिया। ताजमहल परिसर की तरह यहाँ भी मुख्य इमारत तक पहुँचने के लिये लगभग पौन किमी की पद यात्रा करनी पडती है। हुमायूँ के मकबरे को पहला बाग मकबरा होने का रुतबा हासिल है। बाग मकबरा जिसमें बाग बगीचे भरपूर मात्रा में हो, उसे कहा जाता है। यह मकबरालाल लाल बलुआ पत्थरों से बना हुआ है। ध्यान से देखा तो पाया कि अधिकतर कब्र काले-पीले से पत्थर की बनी हुई है। इस इमारत के शीर्ष पर सफेद रंग पोता हुआ है। यह इमारत देखने में चौकोर लगती है लेकिन बतायी आयताकार जाती है? हुमायूँ की असली कब्र वह नहीं है जो मुख्य इमारत के मध्य में आम जनता देखती है। असली कब्र तो तहखाने में है। इस कब्र के बारे में जानकारी जुटाने के क्रम में कुछ बाते पता लगी कि हुमायूँ का शरीर दो अलग-अलग टुकडों में दफनाया हुआ है। मुस्लिम कैलेन्डर जिसे हिजरी कहा जाता है हिजरी के अनुसार इस मकबरे का निर्माण 999 वे वर्ष में पूरा हुआ। एक कब्र पर यह संख्या खुदी हुई है।
हुमायूँ के मकबरा परिसर में एक कोने में शेरशाह सूरी की फौज का एक पठान नियाजी का मकबरा भी बना हुआ है। ईसा खान के मकबरे में खुदाई के दौरान मिली वस्तुएँ एक शीशे में रखी हुई थी। ईसा खान का मकबरा हुमायूँ के मकबरे से 20 वर्ष पहले बना था। यहाँ एक नाई का मकबरा भी है। यह मुगलों का शाही नाई रहा होगा, तभी उसे इतना मान सम्मान दिया गया है।
1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय इस शानदार स्थल को पाकिस्तान जाने वाले लोगों के लिये अस्थायी कैम्प के रुप में रखा गया था। पाकिस्तान जाने वाले उन मुस्लिम लोगों द्वारा इस इमारत को भयंकर रुप से क्षति पहुँचायी थी। उस समय का नुक्सान आज तक ठीक न हो सका। इस इमारत को 30 एकड में फैले हुए बाग ने अलग रौनक प्रदान की हुई है। मकबरे के बाग में जो पैदल पथ बनाये गये है यदि इनकी दूरी किमी में मापी जाये तो यह कई किमी से भी ज्यादा निकल सकती है। तीन किमी लम्बे जल मार्ग इस मकबरे में बनाये गये है जो इस परिसर में फैले पेड-पौधों तक सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध कराते थे। इन्ही जल मार्ग के पास बने पैदल मार्ग को ठीक करने के लिये चार किमी लम्बे लाल पत्थर की आवश्यकता हुई थी। इसकी मरम्मत के दौरान यहाँ इस परिसर से 3000 मिट्टी के ट्रक फालतू मलबे को बाहर लेकर गये थे।
लगभग पौन किमी चलने के बाद मुख्य इमारत के दीदार होते है। मुख्य इमारत में प्रवेश करने वाले द्वार पर पहुँचते ही एक अलग ही दुनिया में पहुँच गये प्रतीत होता है। हमारे सामन बेहद ही शानदार ईमारत खडी थी जिसे देख कुछ पलों के लिये हम अवाक रह गये थे। यहाँ मुख्य द्वार के अन्दर दोनों तरफ ही कुछ फोटो सहित जानकारी इस ईमारत के बारे में दी गयी थी जो मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ। यहाँ जो फोटो दिये गये थे उनके अनुसार यह पूरा परिसर ही चौकोर खानों में विभाजित किया हुआ था। मुख्य इमारत के साथ बाग बगीचे भी चौकोर आकृति में विभाजित थे। यहाँ कुछ ऐसे चित्र भी लगे हुए थे जिन्हे परिसर के भीतर से लेना मुमकिन नहीं था। ऐसे चित्र आकाश में उडने वाले गुब्बारे या किसी अन्य ऊँची इमारत से लिये गये प्रतीत हो रहे थे।
विशाल के पास इस इमारत को देखने के लिये ज्यादा समय नहीं था। शाम 5 बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कालका या चण्डीगढ जाने वाली शताब्दी पकडनी थी। विशाल का सामान निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के लाकर रुम में रखा था। पहले वो सामान भी लेना था। मकबरे की सैर के बाद बाहर बाहर आते ही निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन जाने वाली एक बस आ गयी। स्टेशन पहुँचकर विशाल का सामान लिया और स्टॆशन के बाहर उसी जगह आ गये जहाँ थोडी देर पहले बस ने उतारा था। निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से जहाँगीर पुरी जाने वाली एक AC बस जाने को तैयार थी। मुझे पता था कि यह बस नई दिल्ली रेलवे स्टेशन होकर ही जायेगी। विशाल बोला कि एक बार कन्डक्टर से पूछ तो लो। पूछ लिया भाई, टैंशन ना ले। कैसे ना लूँ, मेरी ट्रेन निकल गयी तो। नहीं निकलेगी भाई, अभी एक घंटा बाकि है जबकि बस वहाँ पहुँचाने में ज्यादा से ज्यादा आधा घंटा ही लगायेगी।
विशाल और मेरी बातचीत चलती रही। संदीप भाई आपको कैसे यकीन है कि यह बस नई दिल्ली स्टेशन होकर ही जायेगी? अरे भाई, मुझे गर्मियों के दिनों में AC बस का पास बनवाकर घूमने का शौक हुआ करता था। एक साल पहले की ही बात है। तब सारी दिल्ली के चक्कर इन्ही AC बसों में लगाये जा चुके है। उन दिनों मै लम्बी दूरी तक जाने वाली बस देखा करता थ। जिसमें मेरे डेढ दो घंटे आसानी से पास हो जाया करते थे। खैर कनाट प्लेस आया तो विशाल की जान में जान आयी। नई स्टेशन पर पहाडगंज साइड से होकर बस निकली। बस स्टाप के ठीक सामने ही प्लेटफार्म नम्बर एक था। स्टेशन में घुसने से पहले एक आइसक्रीम वाला दिखाई दिया। आइसक्रीम वाले से मैंगो वाली आइसक्रीम लेकर सभी ने खायी। विशाल को ट्रेन में बैठा कर विदा किया। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि विशाल हिमाचल की सभी देवियों की यात्रा करने जा रहा था। जिसमें खजियार आदि की यात्रा भी करेगा। विशाल को बैठाने के बाद कुछ देर पहाडगंज की मार्किट में घूमते रहे। उसके बाद हम भी बस में सवार होकर घर पहुँच गये। इस तरह एक दिनी यात्रा समाप्त हुई। इसमें हमने कुतुबमीनार व हुमायूँ का मकबरा देखा।
दोस्तों लेख तो समाप्त हो चुका है। अभी मेरे खजाने में बहुत सी यात्रा लिखने से बची हुई है। देखते है, अब किसकी बारी आती है।  
अब जो यात्रा बची है अधिकतर ग्रुप यात्रा ही है जैसे
देहरादून मालदेवता ग्रुप ट्रेकिंग यात्रा,
मथुरा व भरतपुर ग्रुप यात्रा,
पचमढी व पातालकोट की ग्रुप यात्रा,
बिजली महादेव ट्रेकिंग यात्रा, पाराशर झील व शिकारी देवी ट्रेकिंग यात्रा।
गढ गंगा यात्रा, शनि मन्दिर मथुरा,
केदार कांठा बर्फीले मौसम की ट्रेकिंग यात्रा,
दयारा बुग्याल ट्रेकिंग यात्रा,
कार्तिक स्वामी व तुंगनाथ की भरी बरसात की ट्रेकिंग यात्रा व चूडधार की शानदार ट्रेकिंग यात्रा।
तय नहीं कर पा रहा हूँ कि पहले कौन सी यात्रा लिखूँ!

































26 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

शानदार एक दिवसीय यात्रा....धन्यवाद संदीप भाई अब कब्र को देखने नही जाना पड़ेगा,आपकी आंखों से देख लिया हमने भी मकबरा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-07-2017) को "न दिमाग सोता है, न कलम" (चर्चा अंक-2659) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

kb rastogi ने कहा…

शानदार लेखन , बधाई।

kb rastogi ने कहा…

विशाल कौन , बम्बई वाले। विशाल राठौर-----?

SANDEEP PANWAR ने कहा…

बम्बई वाले विशाल राठौर

Unknown ने कहा…

संदीप भाई मुगलों के बारे मैं अच्छी एतिहासिक जानकारी और आपका शानदार लेखन

Unknown ने कहा…

संदीप भाई मुगलों के बारे मैं अच्छी एतिहासिक जानकारी और आपका शानदार लेखन

Unknown ने कहा…

संदीप भाई मुगलों के बारे मैं अच्छी एतिहासिक जानकारी और आपका शानदार लेखन

Unknown ने कहा…

संदीप भाई मुगलों के बारे मैं अच्छी एतिहासिक जानकारी और आपका शानदार लेखन

Unknown ने कहा…

संदीप भाई मुगलों के बारे मैं अच्छी एतिहासिक जानकारी और आपका शानदार लेखन

vandana gupta ने कहा…

एक अच्छा जानकारी परक आलेख ..........यूं तो दिल्ली में पैदा हुई पली बढ़ी लेकिन कभी देखा नहीं हुमायु का मकबरा ......आज अआपके माध्यम से देख भी लिया और सैर भी कर ली :)और आपसे गूगल ऑफिस में हुई छोटी सी मुलाकात भी ताज़ा हो गयी :)

AJEYA RAO ने कहा…

Hello Sandeep... Thank you for stopping by. I really enjoy reading your blog because it is in Hindi. I am sorry, I am not writing this comment in Hindi but I might eventually. Will return back to check your posts.

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

शानदार एकदिवसीय यात्रा अब अगली बार आने पर इन सब की सेर की जायेगी बढ़िया जानकारी वाला लेख

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

आप अगली यात्रा हो सके तो चूड़धार की भी ले सकते है

Rajesh ने कहा…

Beautiful. Wonderful coverage of the place.

Unknown ने कहा…

अगली यात्रा बिजली महादेव ट्रेकिंग यात्रा, पाराशर झील व शिकारी देवी ट्रेकिंग यात्रा लिख सकतें है।

पंकज शर्मा ने कहा…

Next yatra बिजली महादेव ट्रेकिंग यात्रा, पाराशर झील व शिकारी देवी ट्रेकिंग यात्रा। ye likhiyega.

Yatra bahut badhiya likha tha aapne. padh ke man prasann hua. aise hi ghumte rahiye aur likna mat bhuliyega.
Good wishes.

Gaurav Chaudhary ने कहा…

बहुत सुन्दर वर्णन साहब ....जिन यात्राओं के बारे में आपने जिक्र किया, उन्हें भी हम तक जल्द पहुचाइए। ताकि उन यात्राओं का आनंद भी ले सके।

Motions and Emotions ने कहा…

pics are very nice...

Santosh misra ने कहा…

बेहतर जानकारी के साथ
बहुत अच्छी तस्वीरें !!

Dev rawat ने कहा…

में भी देल्ही में रहते हुए हुमायूं का मकबरा देखने कभी नहीं गया
र्आज आपके द्वारा इसकी भी यात्रा हो गयी वो शानदार फोटो सहित

Dev rawat ने कहा…

देल्ही में रहते हुए में हुमायूं मकबरा देखने कभी नहीं गया
आज आपके द्वारा इसकी भी यात्रा हो गयी वो भी शानदार फोटो सहित
शानदार यात्रा विवरण

Dev rawat ने कहा…

देल्ही में रहते हुए में हुमायूं मकबरा देखने कभी नहीं गया
आज आपके द्वारा इसकी भी यात्रा हो गयी वो भी शानदार फोटो सहित
शानदार यात्रा विवरण

Harshita ने कहा…

मुगलो का कब्रिस्तान सही नाम दिया आपने। इनको मर के भी जगह चाहिए रहती छवि

Abhyanand Sinha ने कहा…

हुमायूँ का मकबरा मैं आज तक नहीं गया, पता नहीं क्यों इन जगहों पर जाने से मेरा मन हिचकता है, वास्तविक न सही पर आपके साथ साथ मैंने भी आभासी यात्रा कर लिया आपके साथ हुमायु के मकबरे की

Sachin tyagi ने कहा…

हुमायूँ का मकबरा देखना बहुत अच्छा लगा। यह मुगलो की चारबाग शैली की प्रथम इमारत है। बाद में इसी नक्शे को लेकर ताजमहल बनाया गया। एक बार मैं भी गया इधर।

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