शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

SAMUDRIKA, NAVAL MARINE MUSEUM, PORT BLAIR



अंडमान व निकोबार की इस यात्रा में आपने अभी तक पोर्टब्लेयर का चिडिया टापू, डिगलीपुर में अंडमान की सबसे ऊँची चोटी सैडल पीक, अंग्रेजों की क्रूरता की निशानी सेल्यूलर जेल, हैवलाक द्वीप के सुन्दर तट और खूबसूरत नील द्वीप, अंग्रेजों का मुख्यालय रॉस द्वीप देखा। इस यात्रा को शुरु से पढना हो तो यहाँ माऊस से चटका लगाकर  सम्पूर्ण यात्रा वृतांत का आनन्द ले। इस लेख की यात्रा दिनांक 28-06-2014 को की गयी थी
समुद्रिका नौसैना संग्रहालय, पोर्ट ब्लेयर SAMUDRIKA, NAVAL MARINE MUSEUM, PORT BLAIR, ANDAMAN,
समुद्रिका नवल मरीन म्यूजियम व अंडमान टील हाउस कैसे पहुँचे?

अंडमान का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राज मार्ग “ग्रेट अंडमान ट्रंक रोड” चाथम ब्रिज (Chatham saw mill) से आरम्भ होता है। यह संग्रहालय इसी ग्रेट अंडमान ट्रंक रोड पर स्थित है। यही सडक यहाँ के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय विमानन पत्तन (International airport) की दीवार के बराबर से होती हुई, अंडमान के अंतिम छोर डिगलीपुर तक चली जाती है। डिगलीपुर में ही अंडमान के सबसे पहाड की चोटी सैडल पीक भी है। इस यात्रा में आप मेरे साथ अंडमान के सबसे उत्तरी छोर डिगलीपुर व सबसे ऊँची चोटी सैडल पीक तक गये भी हो। रॉस द्वीप (ross island) से समुद्निका संग्रहालय आने के लिये हमने एक बार फिर आटो की सवारी की। चाथम जेट्टी से संग्रहालय की दूरी केवल दो किमी, सेलुलर जेल से तीन किमी दूरी तय करनी होती है। पोर्टब्लेयर के सेन्ट्रल बस स्टैंड से यह दूरी पौने दो किमी ही रह जाती है। जैसा कि आपको बताया जा चुका है कि पोर्ट ब्लेयर में लोकल घूमने के लिये आटो सबसे अच्छा साधन है। सवारी एक हो या तीन, किराया उतना ही खर्च होता है। अकेले बन्दे को महँगा पडना तय है। रॉस द्वीप से ठीक दो बजे चले थे। बीच में बस स्टैंड पर नारियल पानी पीते, रुकते रुकाते, आराम से 03:30 बजे तक संग्रहालय पहुँच गये। संग्रहालय शाम 5 बजे तक खुला है। संग्रहालय बहुत ज्यादा बडा नहीं है। इसे देखने में ज्यादा से ज्यादा एक घंटा लग सकता है। हमें इसे आराम से देखने में एक घंटा लगा था।  हमारा होटल टील हाऊस भी सामने ही है एक घंटा बैग कहाँ रखे? चलो पहले होटल में अपना सामान रख आते है।
टील हाऊस सरकारी होटल
टील हाऊस के स्वागत कक्ष पहुँचकर अपने आने की बुकिंग दिखाई। हम एक बार पहले भी यहाँ ठहरने के लिये रुकना चाहते थे। लेकिन इन्होंने रुम खाली नहीं है, बोल दिया था। जिस कारण हमें निजी होटल में जाना पडा था। यह अंडमान सरकार का होटल है। होटल शानदार है। इस होटल में एडवांस बुकिंग कराकर ही जाना चाहिए। स्वागत कक्ष पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर 5-7 मिनट में कमरे की चाबी मिल गयी। अपना सामान कमरे में पटक कर, कैमरे निकाल, संग्रहालय देखने निकल पडे। टील हाऊस होटल व संग्रहालय लगभग आमने-सामने ही है।
समुद्रिका संग्रहालय में क्या देखा
संग्रहालय में प्रवेश करने के लिये 20 रु का टिकट भी लगता है। हमारे पास कैमरे भी है तो उनका भी टिकट लेना होता है। कैमरे का शुल्क भी 20 रु ही है। 20 रु कैमरे के बचाने से क्या होगा? जब हम यहाँ घूमने के लिये हजारों रुपये खर्च कर ही रहे है। इसके खुलने का समय सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है। सोमवार को इसका अवकाश रहता है। यह संग्रहालय भारतीय नौ सेना के अधीन है। यह संग्रहालय पाँच भागों में विभाजित है। जिसमें अंडमान का इतिहास से लेकर. भौगौलिक स्थिति, अंडमान की आबादी व पुरातत्वीय जानकारी के साथ समुन्द्री जीवन के अनमोल खजाने को देखने-समझने में आसानी होती है।
बैरेन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी (Live volcano of India)
संग्रहालय में प्रवेश करते ही सबसे पहले एक विशाल नीली ह्वैल (Blue whale) मछली के महाकंकाल से सामना होता है। कंकाल के बराबर में लगे बोर्ड से जानकारी मिली कि यह कंकाल यहाँ कामोर्टा द्वीप से लाया गया है। ह्वैल मछली को समुन्द्र का सबसे बडा स्तनधारी जीव कहा जाता है। चलो, बाहर इतना खतरनाक जीव दिखाया है तो अन्दर क्या हाल होगा? अन्दर जाते ही सबसे पहले एक फोटो पर नजर ठहर गयी। उस फोटो पर एक ज्वालामुखी की आग उगलती तस्वीर थी। उस फोटो के अनुसार यह द्वीप अंडमान का बैरन द्वीप (barren island, only live volcano in India) है। हम बैरेन द्वीप देखने नहीं गये। बैरेन द्वीप जाने पर पाबंदी लगी हुई है। यह द्वीप हैवलाक द्वीप की दिशा में समुद्र में बहुत आगे जाकर दिखाई देता है। यदि कोई समुन्द्री जहाज यहाँ जाता होगा तो वह यहाँ पहुँचने के लिये कम से कम 15-16 घंटे तो लेता ही होगा।
जरावा जनजाति, मध्य अंडमान
संग्रहालय में आगे कदम बढाते ही जारवा जनजाति का एक फोटो लगा हुआ था जिसमें इस समूह के कुछ सदस्यों का एक ग्रुप फोटो है। यह जनजाति आज भी नाम मात्र के कपडे पहन रही है। उस फोटो के विवरण अनुसार जारवा समूह की कुल आबादी 240 है। सरकार इनके विकास की पुरजोर कोशिश कर रही है। यह आबादी दक्षिण व मध्य अंडमान के घनघोर जंगलों में ही पायी जाती है। पोर्ट बेल्यर से रंगत जाते समय पूरे 50 की यात्रा इनके इलाके से होकर ही करनी पडती है। चलिये अब अगले चित्र की ओर चलते है।
ओंग जनजाति, छोटा अंडमान
जारवा जनजाति की तरह नग्न रहने वाली एक अन्य जनजाति ओंग (Onge) भी अंडमान में पायी जाती है। यह जनजाति पोर्टब्लेयर से दक्षिण दिशा में 130 किमी दूर स्थित छोटा अंडमान (Little Andaman) में निवास करती है। यहाँ जाना आसान नहीं है। यहाँ जाने के लिये विशेष आज्ञा लेनी होती है। ओंग जनजाति के केवल 98 लोग सरकारी रिकार्ड अनुसार आज के समय वहाँ निवास कर रहे है। यह सब जानकारी उस फोटो में दी गयी है।
इसी तरह ग्रेट अंडमानी निवासी व निकोबार के निवासियों के बारे में भी वहाँ फोटो में जानकारी दी हुई है। निकोबार में रहने वाले लोग गाँव के रुप में रहते है। इनकी आबादी के बारे में उस फोटो में लिखा है कि इनकी कुल संख्या 28653 है। इसी तरह ग्रेट निकोबार के जंगलों में सोमपेन जनजाति भी रहती है। इनकी कुल जनसंख्या 398 है। एक अन्य फोटो से पता लगा कि केवल 39 लोगों की जनसंख्या वाले सेन्टीन्लीस जनजाति भी दक्षिण अंडमान के sentinel island में निवास करती है।
पेड पौधे व वन्य जीवों की प्रजातियाँ
अंडमान निकोबार में कुल 2200 प्रकार के पेड पौधों की प्रजाति पाई जाती है। 58 मैमल, 242 पक्षी, 83 रैपटाइल, 10 एमपिबियन्स, 750 मछली, 326 अन्य समुन्द्री जीव जन्तु भी यहाँ पाये जाते है। तितलियों की सैकडों किस्म यहाँ पाई जाती है। हमने अंडमान की इस यात्रा में तितलियों को जी भर के देखा। अलग-अलग फोटो में इन पेड-पौधों व वन्यजीवों की जानकारी दी गयी थी। एक फोटो में यहाँ पायी जाने वाली लकडी (टिम्बर) की जानकारी दी गयी थी। लकडी की 200 से ज्यादा किस्म यहाँ मिलती है। जो इमारत, फर्नीचर आदि बनाने के काम आती है।
एक फोटो में पता लगा कि चाइना के लोग एक हजार साल से भी पहले अंडमान को जानते थे। उन्होंने इसका नाम येंग टी ओमांग रखा हुआ था। अब आगे बढते है तो पानी से भरे कुछ जार (fish aquarium) दिखाई दिये। इनमें रंगीन मछ्लियाँ तैर रही थी। मछलियों के साथ कछुवे भी तैर रहे थे। एक बडे से जार में अनौखी मछली रखी हुई थी। पहले तो मुझे लगा कि इस जार में कोई मछली नहीं है लेकिन जब वह मछली अपनी जगह से हिली तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि पत्थर जैसे दिखने वाली मछली भी हो सकती है।
एक तस्वीर से पता लगा कि भगवान वरुण नौ सेना के प्रतीक है। नौ सेना में वरुण देवता को बहुत महत्व दिया गया है। देवी-देवता के चक्कर में तो पूरी दुनिया पडी है। फिर नौ सेना कैसी अछूती रह सकती है? चलिये अगले कमरे में चलते है। अगले कमरे में ढेर सारे कोरल भरे पडे है। अब तक की अंडमान यात्रा में हमने किनारे पडे हुए या पानी के अन्दर के कोरल ही देखे थे। इस संग्रहालय में आकर कोरल (मूँगा) की इतनी विभिन्नता देख, मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। एक-एक कोरल की फोटो लेकर ही अगले कोरल तक पहुँचना हो पाता था। अलग-अलग तरह के ढेरों शंख भी देखे। इन शंखों में पूजा के काम आने वाले शंख भी शामिल थे। वैसे शंख मैंने बहुत सारी धार्मिक जगहों पर देखे है। लेकिन जितनी विभिन्नता यहाँ देखी, उतनी कही नहीं देख पाया। शंख एक जीव की बाहरी आवरण होता है इसका पता मुझे बहुत बाद में लगा। इससे पहले मैं शंख को किसी फैक्ट्री आदि में बनाया हुआ समझता था। रामेश्वरम की यात्रा में (2009) मैंने पहली बार जीवित अवस्था में शंख देखा था। एक मछुआरे ने जाल से निकाल कर अलग रखा हुआ था। उस शंख में जीवित जीव का अपने अंतिम समय में छट-पताहट मुझे आज भी याद है।
बडे आकार के कछुवे
शंख के कमरे से आगे बढे तो बडे कछुवों की कठोर ढांचा (hawksbill turtle) कमर भी देखी। इतना बडा कछुवा मैंने जीवित अवस्था में अभी तक नहीं देखा है। इन्हे देख लगता है कि कछुवे का आकार काफी बडा होता है। कछुवा इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा लम्बी उम्र जीने वाला प्राणी है। कछुवे की उम्र 200 साल तो आम बात होती है। लेकिन जालिम दुनिया उन्हे इतने लम्बे समय तक जीने ही नहीं देती। कोई मांस भक्षण के लिये तो कोई उसकी मजबूत पीठ के लिये उसे मार ही डालता है। यहाँ थाली के आकार की सीप भी देखी। इसका नाम ही थाली सीप रखा हुआ है। अंडमान के इस संग्रहालय में दो जार में साँप भी रखे गये है।
अगले कमरे में पहुँचे तो यहाँ एक नाव देखी। नाव के बराबर में नारियल के पेड का तना बाँधा हुआ था। नारियल का पेड तेज लहरों में नाव को इधर-उधर पलटने व डूबने से बचा लेता है। गहरे समुन्द्र में मछली पकडते समय नाविक यह जुगाड आजमाते है। नाव से आगे बढे तो जरावा लडके की कहानी बताता एक बडा सा फोटो मिला।
जारवा लडके की आम जनता से मुलाकात की कहानी
उस फोटो अनुसार कदमतला गाँव के खेतों से केले तोडने के लिये एक जारवा लडका, केले तोडकर भागते समय जख्मी हो गया था। उस जख्मी जरावा लडके को पुलिस ने सुरक्षित निकाल अधिकारियों तक पहुँचाया। उपचार के लिये वह लडका पोर्ट बेलयर के सरकारी अस्पताल लाया गया। वहाँ उसका उपचार हुआ। उपचार के दौरान उसे बना-बनाया खाना मिला। ठीक होने के बाद पुलिस ने उस जंगली लडके को उसी जगह वापिस छोड दिया, जहाँ से वह मिला था। लडका जब अपने लोगों के बीच लौटा तो उसने सरकार व भारतीय जनता के प्यार दुलार के बारे में अपने लोगों को बताया। समय बीतता रहा, उस लडके के साथ उसके अन्य साथी भी सरकारी अधिकारियों व नागरिकों से मिलने आया करते है। उस लडके से पहले जंगली (सभ्यता विहीन) लोग वहाँ रहने वाली जनता से दुश्मनों जैसा व्यवहार करते थे। जंगली लोग वहाँ रहने वाले लोगों के खेत से फसले व केले आदि चुरा कर ले जाते थे। आज जरावा के जंगलों के निवासी सरकार से सहयोग कर रहे है।
धर्म व पंथ
अंत में इस संग्रहालय के समाप्त होते होते, यहाँ एक फोटो ऐसा भी देखने को मिला जिसमें समुन्द्र मंथन का चित्रमय विवरण था। हिन्दू ग्रन्थों में समुन्द्र मंथन को बहुत महत्व दिया गया है कि कैसे राक्षसों व भगवानों ने समुन्द्र का मंथन कर इस पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीव आदि उत्पन्न किये थे। मैं सभी धर्मों की अच्छी बातों को मानता हूँ तो सभी धर्मों की अंध विश्वास बढाने वाली बात का विरोध भी खुल कर करता हूँ। सभी धर्म अंध-विश्वास व ढोंग ढकोसले के बल पर आगे बढाये जा रहे है। इनमें कुछ अच्छी बाते भी है जिस कारण ना चाहते हुए बहुत से लोग इनके साथ जुड जाते है। मैं पुराण हो या कुरान अथवा बाईबिल (कुरान में अधिकतर बाते बाइबिल की लिखी हुई है।), सभी की बनावटी बातों से खिलाफ हूँ। मैंने गीता भी पढी है, बाइबिल भी पढी है, कुरान भी पढी है। इन सबका पांखड खोलती “सत्यार्थ प्रकाश” भी पढी है। चलो धर्मों का बम्बू करना छोड अपने होटल लौट चलते है। कल सुबह बम्बू जेट्टी जाना है। वहाँ एक पहाड की ट्रैकिंग करेंगे। (क्रमश: continue)








































1 टिप्पणी:

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

म्यूजियम देखने लायक जगज होती है मुझे बहुत पसन्द है ,यहाँ का मयूजियम भो जोरदार है

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