बुधवार, 4 मई 2016

Nanda Devi Rajjat Yatra 2014 नन्दा देवी राज जात यात्रा सन 2014

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-01          लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।



नन्दा देवी राजजात यात्रा कुम्भ के मेले की तरह पूरे 12 साल बाद आती है लेकिन सन 2014 ऐसा साल रहा जिसमें यह यात्रा 12 साल की जगह 14 साल में हो पायी। यह यात्रा पिछले साल केदारनाथ हादसे के कारण नहीं हो पायी। जब मैंने इस यात्रा के बारे में सुना था तब यह इरादा कर लिया था कि जब भी यह यात्रा होगी इसमें मैं अवश्य शामिल रहूँगा। अधिकारिक रुप से इस यात्रा का समय 18 अगस्त को आरम्भ हो चुका था। इस यात्रा की अवधि 18 अगस्त से लेकर 06 सितम्बर तय की गयी थी। इस यात्रा के शुरु के 12 दिन में मेरी कोई रुचि नहीं थी। ऐसा नहीं था कि मुझे सम्पूर्ण नन्दा देवा राज जात यात्रा देखने की इच्छा नहीं है। समस्या समय की कमी है। नौकरी व बच्चों की जिम्मेदारी से पूरी तरह मुक्त होकर घुमक्कडी कार्य अपनी दैनिक जीवन का हिस्सा बन जायेगा। फिर तो साल में अवकाश मनाने घर आया करुँगा। जैसे फौजी दो महीने की छुट्टी काटने घर आते है। ठीक वैसे ही। खैर उस काम में अभी बहुत लम्बा समय बाकि है। मेरी रिटायरमेंट 30 जून 2036 में निर्धारित है। अगर सरकार रिटायरमेंट की उम्र 55 भी करती है तो मैं उसका स्वागत करुँगा। अपने आप रिटायरमेंट लेने की तो कोई मुश्किल से ही सोचता है। यात्रा छोड अपनी रिटायरमेंट में घुस गया चलो नन्दा देवी यात्रा पर लौट चलते है। इस यात्रा को करने के लिये वाण गाँव आधार माना जाता है। यात्रा भले ही नौटी से आरम्भ होती हो लेकिन सडक वाण आकर ही समाप्त होती है।

यात्रा नौटी गाँव से आरम्भ होकर ईडाबधानी जाती है जहाँ स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्टा कर यात्रा का शुभारम्भ किया जाता है। अगले दिन यात्रा पुन: नौटी लौटती हुई आगे बढती है। नौटी से कांसुवा, सेम, कोटी, भगोती कुलसारी, चेपडियूँ, नन्दकेसरी, फल्दियागाँव, मुन्दोली होकर वाण पहुँचती है। वाण से आगे गैरोली पाताल, वैदनी, पातर नचौणियाँ, घोडा लौटनी, कालू विनायक, भगुवा बासा, चिडिया नाग, रुपकुण्ड, शिला समुन्द्र, होमकुण्ड, चन्दनियाघाट, सुतोल घाट, नौटी लौटती है। इस तरह इस यात्रा को पूर्ण होने में करीब 20 दिन लगते है। नन्दा  को कुमाऊँ व गढवाल में समान रुप से पूजा जाता है। ऐसी ही एक यात्रा नन्दा देवी की घिया विनायक क्षेत्र में होती है। राज जात यात्रा कुमाऊँ से आरम्भ होकर गढवाल में समाप्त होती है। यह यात्रा 280 किमी की दूरी तय करती है। सुतोल से होमकुण्ड होते हुए सुतोल पहुँचने में 34 किमी की दूरी तय करनी होती है। लाटा खोपडी नामक जगह पर रुककर रात्रि विश्राम किया जा सकता है। ऊपर लिखे सभी स्थलों में से अधिकतर पर रात्रि विश्राम किया जा सकता है। अगर आपके पास टैन्ट, स्लीपिंग बैग है तो चिंता नहीं करना, फिर चाहे रुपकुण्ड हो या होमकुण्ड, शिला समुन्द्र या लाटा खोपडी।

इस यात्रा की तैयारी कई दिन पहले कर ली गयी थी। मैं रुपकुण्ड तक पहले भी जा चुका था। लेकिन उस पहली रुपकुण्ड यात्रा को मैंने 18 अक्टूबर में किया था उस समय यहाँ अच्छी खासी बर्फ़ पडने के कारण रुपकुण्ड के अस्थि पंजर, खोपडी, कंकाल सब कुछ बर्फ के नीचे दब गये थे। उस यात्रा को करना न करना अधूरा ही साबित हुआ था। इसलिये यह मौका हाथ से जाने नहीं देना था। मैं पहाड में ठीक ठाक तेजी से चढ लेता हूँ। इसलिये कई बार मेरे साथ हल्के-फुल्के चलने वाले परेशान भी हो जाते है। इसलिये अब मैं अपने साथ दूसरे बन्दों को कम ही लेकर जाता हूँ कि लोगों को पहाडों में जाने का जोश तो बहुत होता है लेकिन पहाड में जाकर जो समस्या सामने खडी होती है उससे निपटने की पहले से कोई तैयारी नहीं करते है। मैं कभी भी पहाड में पैदल यात्रा के लिये बिना तैयारी किये नहीं जाता हूँ। किसी भी यात्रा पर जाने से कम से कम 15 दिन पहले प्रतिदिन 2 घन्टे की पैदल चाल हर हालत में करता हूँ। यह 2 घन्टे कार्यालय आने-जाने में या घर पर आसपास टहलने में बिताये जाते है। यदि किसी के पास दो घन्टे बाहर जाने का समय नहीं हो तो उसके लिये सुझाव है कि वह घर पर या अपने कार्य स्थल पर कम से कम 2 घन्टे बिना बैठे, खडा रह सके तो उसे पहाड में चलने में कम समस्या आयेगी। मैं जो सलाह बताऊँगा उस पर पहले अमल करता हूँ तब दूसरों को अपनाने को कहता हूँ। मैं आज तक कोई यात्रा अधूरी छोड कर नहीं आया हूँ। ऊपर वाले का आशीर्वाद व अपनी मेहनत हमेशा साथ देती है।

मैंने अपनी यात्रा दिनांक 01-09-2014 को सुबह 4 बजे आरम्भ की थी। आपने देखा ही होगा कि मैं अपनी अधिकतर बाइक यात्रा सुबह सवेरे 4 बजे ही आरम्भ करता हूँ। रात को बाइक चलाना मुझे पसन्द नहीं है। पता नहीं सडक पर कहाँ गडडा मिल जाये। दिन की रोशनी में तो काफी दूर तक दिखाई भी देता है लेकिन रात को सिर्फ़ बाइक की लाइट के भरोसे ही चलना होता है। रात में बाइक की रोशनी में 40 की गति भी मुझे ज्यादा लगती है तो दिन में 70-80 की गति भी सुरक्षित लगती है। वैसे सुरक्षित शब्द से आप में से कई मेरी बात से सहमत नहीं होंगे कि संदीप पवाँर जी आप किस गति को सुरक्षित मानते हो। भाई सच कहूँ तो मैं उस गति को सुरक्षित मानता हूँ जिस पर आपका नियंत्रण हो। अगर आपका नियंत्रण 100 की स्पीड पर है तो भी किसी से नहीं भिडोगे। इसके उल्ट यदि आपका नियंत्रण 10-20 की गति पर भी नहीं है तो किसी को ठोकोगे या नहीं, यह तो नहीं कह सकता, लेकिन यह पक्का तय है कि आप बिना नियंत्रण की गाडी थोडी देर में ही किसी को ठोके बिना भी उसकी लुटलुटी लगवा सकते हो। मैं अब तक सबसे तेज बाइक बुलेट 500 cc की 120-125 की गति से चलायी है। अपनी नीली परी 110 तक की गति से भगायी है। कार भी 120 के आसपास दौडा चुका हूँ।

बात चली थी यात्रा की फिर से बात कही और जा पहुँची। चलो एक बार फिर अपनी नन्दा देवी राजजात यात्रा की ओर लौट चले। सुबह 4 बजे घर से चलकर 04:30 बजे मुरादनगर पहुँच गया। मनु के घर के पास पहुँचकर याद आया कि बैट्री बैकअप रात को चार्ज पर लगाया था। वो चार्ज पर ही लगा रह गया। खोपडी खराब कि याद क्यों नहीं आया। तुरन्त बाइक वापिस घुमायी। एक कहावत है ना गम बुद्दी बानिया तो तुरत बुद्दी जाट। वो कहावत यहाँ साबित भी हो गयी। 5 बजे वापिस घर पहुँचा। एक घन्टा बेकार में ही खराब हो गया। अब तक मेरठ पार हो गया होता। घर से बैट्री बैक अप लेकर अपनी यात्रा पर पुन: नीली परी दौडा दी। नीली परी सन 2005 का माडल है जो आज भी मेरा साथ बखूबी निभा रही है। घर से निकलते समय अभी भी अंधेरा ही था। रोशनी कहाँ हुई ठीक से याद नहीं, लेकिन शायद मोदीनगर पार करने के बाद हुई थी। मुज्जफ़र नगर से काफी आगे तक अच्छी सडक बनी हुई है। उत्तराखण्ड की सीमा के कुछ पहले ही कुछ किमी तक सिंगल सडक थी दूसरी तरफ की सडक पर निर्माण कार्य चालू था। मेरठ से आगे खतौली के पास इस राज मार्ग पर टौल टैक्स देना पडता है। टौल टैक्स लगता है तो सडक भी अच्छी हालत में है। अपने दिल्ली लोनी, बडौत, शामली, सहारनपुर वाले राज मार्ग की हालत देख लो। अगर उस पर टौल की किसी कम्पनी को लगाया दिया जाये तो उसकी पस्त हाल्त हालत भी, मस्त हो सकती है।

हरिद्वार पहुँच कर शिव शंकर जी की बडी मूर्ति के आगे बाइक रोककर हाथ पैर सीधे किये। अभी तक घर से नान स्टाप चला आ रहा था। समय देखा सुबह के 08:40 मिनट हो गये थे। मैं सोच रहा था कि नौ बज चुके होंगे। 10 मिनट रुका। दो चार फोटो लिये, चलो अब आगे चलते है। मैं हरिद्वार व ऋषिकेश से आगे जाते समय हमेशा बाई पास से निकलना पसन्द करता हूँ। ऋषिकेश बाई पास से होता हुआ। देहरादून चौक नामक जगह पहुँचा। अब ऋषिकेश का नया बस अडडा भी नजदीक ही बन गया है। अभी चार महीने पहले मैं मदमहेश्वर की असफल यात्रा से वापिस आया था तो दिल्ली से सीधी बस में बैठा था जो गुप्तकाशी तक की मिली थी। असफल यात्रा से यह मत सोचना कि मैं बीच यात्रा से वापिस क्यों लौटा? मुझसे गलती यह हो गयी थी कि मैं किसी की फेसबुक पोस्ट देखकर यह मान बैठा कि मदमहेश्वर के कपाट खुल चुके है। जब मैं ऊखीमठ पहुँचकर, रांसी वाली जीप में बैठा तो मेरा बैग देखकर चालक बोला, “भाई जी यात्रा के लिये आये हो।“ हाँ भाई, मदमहेश्वर जा रहा हूँ। लेकिन कपाट तो अभी खुले ही नहीं है और बिना कपाट खुले, अब किसी को आगे नहीं जाने देते। कपाट खुलने का समय पता लगाया तो अभी चार दिन बाकि थे। चार दिन पडा-पडा वहाँ क्या करता? इसलिये दिल्ली लौट आया। बे फालतू में 1400 रु फटका और लग गया था।

ऋषिकेश बाईपास से आगे बढते है। सामने पहाड दिख रहे है चलो मैदान की यात्रा समाप्त होती है अब पहाडों की रानी “नीली परी” के जलवे देखते है। दो किमी ऊपर जाते ही T पाईन्ट आता है यहाँ से सीधे हाथ गंगौत्री वाला मार्ग है तो उल्टे हाथ बद्रीनाथ जाने वाला मार्ग है। बद्रीनाथ जाने मार्ग की ओर से ही पहले ऋषिकेश से गंगौत्री के बीच चलने वाली बसे आती थी। अब देहरादून चौक से होकर बसे गंगौत्री की ओर निकलती है। यह बाईपास अभी समाप्त नहीं हुआ था। एक जगह एक बोर्ड को पढने के चक्कर में यह ध्यान नहीं रहा कि बाइक को ज्यादा नहीं  मोडना है। बाइक की गति मुश्किल 20-22 की ही होगी। ध्यान चूकते ही बाइक सडक किनारे पत्थरों में जा घुसी। गलती का आभास होते ही बाइक रोक दी। बाइक नियंत्रण में थी। एक बाइक सवार मेरे पीछे चला आ रहा था। मुझे पत्थरों में घुसे देख बोला, “पहाडों में सम्भल कर बाइक चलाओ”। यहाँ लापरवाही मत करो। वो कुछ और लेक्चर देता उससे पहले मैंने कहा, मैंने तो आज पहली बार बाइक चलायी है। आज पूरा दिन चलाऊँगा। वो बाइक सवार ज्यादा स्यानपटटी झाडने लगा, उसने डराया भी तो मुझे कहना पडा। अच्छा भाई, पहाडों में बाइक चलाना इतना खतरनाक है तो मैं वापिस जा रहा हूँ। मुझे बख्श दे।

कुछ देर रुककर अपने आप को सामान्य किया। सामान्य होते ही पुन: अपनी यात्रा आरम्भ हो गयी। मैं कहाँ बाज आने वाला। कोई 10 किमी बाद वो बाइक वाला आगे जाता हुआ दिख गया। मैंने उससे आगे निकलते हुए कहा, देखो अब तो बाइक चलानी आ गयी ना। नीली परी उस बाइक सवार को पीछे छोड मंजिल की ओर बढती रही। हरिद्वार से करीब 29-30 किमी बाद सडक किनारे बडा सा बोर्ड आता है। जहाँ से दिल्ली 251 है तो बद्रीनाथ 291 किमी व केदारनाथ 223 किमी रह जाता है।  उस बोर्ड के दोनों तरफ के फोटो लिये और आगे चल दिया। हरिद्वार से 9 बजे चला था। रुद्रप्रयाग पहुँचते-पहुँचते 11:50 हो गये। यहाँ संगम का फोटो लिया। रुकने का समय नहीं था। फोटो लेता और आगे बढ लेता। करीब तीन बजे कर्ण प्रयाग पहुँच चुका था। सुबह से कुछ खाया पीया भी नहीं था। कर्णप्रयाग से थोडा पहले रुककर पानी पिया। एक बिस्कुट का पैकेट रखा था। एक लीटर के साथ बिस्कुट का बटर बाइट वाला 200 ग्राम का पैकेट चट कर आगे बढा। अंधेरा होने से करीब आधा घन्टा पहले वाण पहुँच चुका था। मैंने पाजामें के नीचे नी पैड पहना हुआ था। कोहनी वाला पैड विन्ड शीटर के अन्दर था। सिर्फ़ दस्ताने ही बाहर दिखायी दे रहे थे। वाण पहुँचते ही सबसे पहले शरीर के सुरक्षा कवचों को विश्राम दिया। अब इनकी आवश्यकता कई दिन बाद पडेगी। तब तक मैं नन्दा देवी राजजात की ट्रेकिंग करके आता हूँ।


वाण में पोस्ट मैन कलम बिष्ट के चार कमरे वाले माँ नन्दा देवी रेस्टोरेंट वाले ठिकाने में ही ठहरा। पिछली बार भी मनु और मैं यही ठहरे थे। यहाँ ठहरने का किराया पिछली यात्रा में केवल 50 रु था अबकी बार 75 रु हो गया। पिछली बार खाने का काम पोस्टमैन जी का लडका खुद कर रहा था। इस बार इनके बराबर में एक दुकान थी जो ढाबे के काम में बदली हुई थी। दिन भर मौसम अच्छा रहा। छिटपुट बून्दाबांदी को छोडकर, कही बारिश नहीं हुई थी। वाण में रात को जमकर बारिश हुई। सुबह जल्दी निकलने का इरादा था। मैं सोच रहा था कि सुबह 5 बजे वाण से निकल जाऊँगा। ताकि अंधेरा होने से पहले भगुवाबासा पहुँच जाऊँ। बारिश सुबह के 6 बजे भी जारी थी। बैठा रहा कि बारिश रुके। 7 बजे गये लेकिन बारिश नहीं रुकी। मुझे बारिश पर गुस्सा आ रहा था। बीच ट्रैकिंग में बारिश हो जाये तो कोई चिंता नहीं लेकिन बारिश में शुरुआत करने का मन नहीं होता। आखिरकार 07:40 पर बारिश बन्द हो गयी। बाहर निकल कर अनुमान लगाया कि अब दिन में यह बारिश तंग नहीं करेगी। अपना बैग उठाया और दे दना-दन चढाई पर अपनी वाली स्पीड से शुरु हो गया। (क्रमश:)











9 टिप्‍पणियां:

travel ufo ने कहा…

50 से 75 ? बहुत कम बढे पैसे । वैसे कमरा ठीक ठाक है । वाण तक की सड़क पक्की हुई या नहीं

travel ufo ने कहा…

50 से 75 ? बहुत कम बढे पैसे । वैसे कमरा ठीक ठाक है । वाण तक की सड़क पक्की हुई या नहीं

sarvesh n. vashistha ने कहा…

देवप्रयाग , कर्णप्रयाग जी की बहुत सुंदर फोटो। हिंदी के घुम्मकड़ लेखक बहुत कम हैं। कृपया आप भी अपनी इस खूबसूरत कला को जो सबको प्राप्त नहीं होती , दबा कर न रखें। इतनी छोटी उम्र में इतना आगे बढ़ने के बाद रुकना ठीक नहीं। ॐ..

sarvesh n. vashistha ने कहा…

देवप्रयाग , कर्णप्रयाग जी की बहुत सुंदर फोटो। हिंदी के घुम्मकड़ लेखक बहुत कम हैं। कृपया आप भी अपनी इस खूबसूरत कला को जो सबको प्राप्त नहीं होती , दबा कर न रखें। इतनी छोटी उम्र में इतना आगे बढ़ने के बाद रुकना ठीक नहीं। ॐ..

रमता जोगी ने कहा…

वाह देवता, व्हाट्स एप्प पे दिख मत जाना अब, जब तक सब लिख ना डालो। लगे रहो।

रमता जोगी ने कहा…

वाण तक सड़क पक्की हो गयी और बिजली भी आ गयी मनु भाई।

Sachin tyagi ने कहा…

जय जाट देवता की।
आखिरकार नंदादेवी राजजात की यात्रा वृतांत शुरू हो ही गया। बहुत शुभकामनाएँ...

Yogi Saraswat ने कहा…

कब से इंतज़ार कर रहा था इस यात्रा वृतांत का , अब जाकर पूरा किया है आपने ! ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक की रेल लाइन कब पूरी होगी , कुछ न पता !

विकास गुप्ता ने कहा…

नन्दा देवी राज जात यात्रा के बारे में पहली बार सुना है अगर कभी साथ हुआ तो शायद यह यात्रा कर सके। चित्र सुन्दर और जानकारी पूर्ण वर्णन।

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