शुक्रवार, 9 मई 2014

Bageshwar to Delhi Via Almora बागेश्वर से अल्मोडा होते हुए दिल्ली तक

KUMAUN CAR YATRA-04                                                      SANDEEP PANWAR
पाताल भुवनेश्वर देखने के लिये जाते समय एक दुकान पर खीरे का रायता बोल कर गये थे। वापसी में उस दुकान से रायता पीकर ही आये। रायते के साथ आलू की चाट भी थी जिससे स्वाद कई गुणा बढ गया। जब तक राजेश जी ने गाडी मोडी। तब तक मैंने सडक किनारे के होटलों पर कमरों के दाम के बारे में पता किया। उन्होंने बताया कि 500 रु तक में कमरा मिल जायेगा। मेरे गाडी में बैठते ही राजेश जी गाडी लेकर चल दिये। वापसी में राई आगर के उसी होटल पर आइसक्रीम की पेट भर दावत खाने की बात तय हुई थी जहाँ रात को ठहरे थे। राई आगर पहुँचते ही आइसक्रीम का 5 लीटर वाला डिब्बा ले लिया। 


हम चारों संदीप, अजय, प्रवीण व राजेश जैसे आइसक्रीम के दीवानों को सवा किलो से कम पर बात कहाँ बनने वाली थी? खाने वाली प्लेट आइसक्रीम खाने के लिये ले ली। ठन्ड के मौसम में आइसक्रीम खाने का अपना स्वाद है। आइसक्रीम तेजी से पिघलती भी नहीं है। वहाँ आइसक्रीम जल्दी खाने के लिये दुकान के बाहर धूप में खडा होना पडा। दुकान वाली ने आइससक्रीम परोसने में हमारा सहयोग किया। होटल संचालिका का व्यवहार काफ़ी मिलनसार था। जिस कारण ऐसा नहीं लग रहा था कि हम उनसे पहली बार मिल रहे है। अजय भाई ने होटल संचालिका का फ़ोटो लेने की इजाजत पहले ही ले ली थी ताकि बाद में कोई पंगा ही ना रहे।
आइसक्रीम का जबरदस्त नाश्ता हो गया। अब दिन भर में कुछ खाने की जरुरत ही नहीं पडेगी। यदि कुछ खाने का मन होगा भी तो अजय के लाये गये नमक पारे किस काम आयेंगे? राजेश जी अपने हिस्से ही सवा लीटर आइसक्रीम भी नहीं झेल पाये। मुझे व अजय को अपने हिस्से से ज्यादा आइसक्रीम खानी पडी। राजेश जी को चलने की जल्दी थी जिस कारण उन्होंने कहा कि बाकि आइसक्रीम गाडी में खा लेना। लेकिन हम अपने साथ कुछ बर्तन भी नहीं लाये थे फ़िर आइसक्रीम कैसे लेकर चलते? जब सारी आइसक्रीम निपट गयी तो आइसक्रीम के 300 रु चुकाये और हम गाडी में बैठ गये। मैं अपने साथ ज्यादा रु लेकर नहीं आया था। अजय, प्रवीण व राजेश (जी नहीं लगाया) ही हिसाब चुकता करते आ रहे थे।
राइ आगर इस इलाके का महत्वपूर्ण मोड है। पिथौरागढ से दिल्ली जाने वाली बसे यही से होकर जाती है। यहाँ से हल्दवानी के लिये सीधी जीपे चलती है। जिसका किराया मात्र 350 रुपये बताया गया। बस का किराया शायद 290 रु बताया था। कल जिस मार्ग से आये थे आज उस मार्ग से वापिस नहीं जाना था। अब बैरीनाग की ओर चल दिये। बैरीनाग यहाँ की तहसील है तहसीलदार का कार्यालय भी यही है। बैरीनाग से आगे उदियारी मोड आता है यहाँ से थल का मार्ग अलग हो जाता है। थल से मुनस्यारी 70 किमी के करीब रह जाता है। मुनस्यारी एक शानदार पर्वतीय स्थल है। मुनस्यारी से मिलम और रलम ग्लेशियर के ट्रेकिंग मार्ग आरम्भ होते है। जिनकी यहाँ से पैदल दूरी करीब 70-75 किमी है।
थल से डीडीहाट, पिथौरागढ होकर धारचूला जाया जाता है। जहाँ से आदि कैलाश व कैलाश मानसरोवर यात्रा पर्वत की पैदल यात्रा आरम्भ होती है। तवाघाट से आदि कैलाश का एक अन्य पैदल मार्ग भी है जबकि दूसरा मार्ग कैलाश मानसरोवर वाले मार्ग पर ऊँ पर्वत तक चलना होता है उसके बाद जोलिंगकोंग गाँव पहुँचकर आदि कैलाश पहुँचा जा सकता है। मेरा इरादा इन दोनों मार्ग को देखना है। एक से जाऊँगा तो दूसरे से वापिस आऊँगा।
उदियारी मोड से चौकोडी मात्र 4-5 किमी है। चौकोडी से बागेश्वर की दूरी 40 किमी के करीब है। इस सडक की हालत राइ आगर से ही शानदार है। शानदार सडक बागेश्वर तक बनी रहती है। बागेश्वर अभी 18 किमी बाकि था कि कार के अगले पहिये में टक-टक की आवाज आने लगी। गाडी रोककर पहिया चैक किया तो उसमें गाडियों में लगने वाली एक पेंचदर कील घुसी दिखायी दी। कील खीचने की कोशिश की तो हवा निकलने की आवाज सुनी। हवा निकलने के डर से कील नहीं निकाली। राजेश जी तेजी से कार लेकर चलने लगे। मैंने लगातार पहिया पर ध्यान बनाये रखा कि कही हवा निकल गयी तो पहिया बदलना पडॆगा।
बागेश्वर पहुँचने से कई किमी पहले सडक में ढलान दिखायी देने लगा। एक मोड पर आये तो एक घाटी दिखायी दी। घाटी में कोई शहर बसा था जरुर बागेश्वर ही होगा। बागेश्वर पहुँचकर सबसे पहले पहिये का पेंचर लगवाना था। अब तक पहिये की हवा जरा भी कम नहीं हुई थी। नदी का पुल पार करते ही एक पुलिस वाली से पेंचर की दुकान व बागेश्वर मन्दिर के बारे में पता किया। पुलिस वाली ने कहा कि मन्दिर उल्टे हाथ है जबकि पार्किंग व पेंचर की दुकान सीधे हाथ पिण्डारी ग्लेशियर वाले मार्ग है। पिन्डारी ग्लेशियर के पास सुन्दर डूँगा ग्लेशियर भी है। जिसके लिये पिन्डारी वाले मार्ग पर खाटी से अलग पगडन्डी कटती है।
पुल पार कर पिण्डारी वाले मार्ग पर एक किमी जाने के बाद भी कोई पेंचर वाला नहीं मिला। हमें पिण्डारी जाना नहीं था इसलिये वापिस पुल के पास लौट आये। पिण्डारी जाना तो है लेकिन कब नहीं मालूम? पुल के पास एक बोर्ड लगा हुआ है जिस पर लिखा है कि पिन्डारी ग्लेशियर की दूरी वाहन व पैदल मिलाकर 90 किमी है। तिराहे पर वापिस आते ही पुलिस वाली से फ़िर पूछा कि अल्मोडा जाना है। अबकी बार पुलिस वाली ने बागेश्वर मन्दिर के सामने से होकर जाने वाली तीसरे मार्ग की ओर इशारा किया। पुल से थोडा आगे ही गये थे कि बागेश्वर मन्दिर का प्रवेश दरवाजा दिखायी दिया। यहाँ गाडी पार्क करने की जगह नहीं थी इसलिये गाडी खडी करने के चक्कर में काफ़ी आगे निकल आये।
एक बार फ़िर लोहे का एक अन्य पुल पार किया। राजेश जी पहले पेंचर लगवाने के पक्ष में थे। इसलिये पहले पेंचर वाले को तलाश किया। पेंचर वाला मन्दिर से करीब दो किमी दूर जाकर मिला। कार में टयूब लैस टायर थे जिसमें पेंचर लगाने में ज्यादा समय नहीं लगता है। मुश्किल से 5 मिनट का समय लगा होगा। तब तक मैं और अजय, माजा की दो बोतल व बिस्कुट ले आये। दुकान वाले ने पहले तो एक्सपायरी दिनांक वाली बोतल थमा दी। बोतल की हालत देखकर शक हुआ तो उसकी तारीख देखी। उसे बदल कर दूसरी बोतल ली गयी। पेंचर लग चुका था इसलिये वहाँ रुकने का कोई कारण नहीं था।
राजेश जी बोले किधर चलना है? अब हम शहर से बाहर आ चुके है इसलिये वापिस नहीं जाना है। अब सीधे अल्मोडा चलो। राजेश जी गाडी लेकर अल्मोडा की ओर चल दिये। अल्मोडा पहुँचने तक, सडक किनारे एक से एक नजारे मन व कैमरे में समाते रहे। अल्मोडा पहुँचकर बाइपास वाला मार्ग पकड लिया। दिन में शहर की भीड में क्यों घुसा जाये? अल्मोडा में उस तिराहे पर पहुँच गये। जहाँ से कल हमने दूसरा मार्ग लिया था। यहाँ से दिल्ली की दूरी 350 किमी है। अल्मोडा से हल्दवानी 90 किमी है। सामने ही बाल मिठाई की दुकान थी जिस पर मैंने कल दाम पता किये थे। मैंने के किलो बाल मिठाई ले ली। बाकि किसी की इच्छा नहीं थी।
सडक किनारे चौडी सडक पर एक अल्टो कार ठुकी हुई खडी थी। एक युगल अपनी बाइक रोककर मोबाइल से उसकी फ़ोटो ले रहे थे। मैंने भी कैमरा उठाया और उसका फ़ोटो ले लिया। मार्ग में एक से बढकर एक नजारे आते गये। अल्मोडा के आगे नदी किनारे एक मन्दिर था जिसे देख हरिदवार के मन्दिर की झलक दिखायी दी। जगह बडी शांत है। मौका लगा तो एक रात्रि इस नदी किनारे विश्राम किया जायेगा। कार में बैठकर बाहर के नजारे देखने में बडा सुकून मिलता है। गाडी चलाने वाले को यह नसीब नहीं होता। उसे यह सब देखने के लिये गाडी रोकनी पडॆगी या थोडा रिस्क उठाना होगा। राजेश जी रिस्की बन्दे नहीं है।
हमें कल बारिश ने बहुत तंग किया था आज बारिश की एक बून्द भी नहीं मिली। कैंची धाम पर कल बहुत भीड थी आज इक्का-दुक्का बन्दा दिखायी दे रहा था। भवाली आने के बाद सीधे जाने वाले भीमताल मार्ग पर ना जाकर, नैनीताल वाली सडक पर सीधे हाथ चढने लगे। तीन किमी के बाद जो तिराहा आता है यहाँ से नैनीताल व दिल्ली के मार्ग अलग-अलग हो जाते है। आज मौसम साफ़ है लेकिन आज नैनीताल जाने का मन नहीं है। अब अंधेरा होने से पहले काठगोदाम पहुँचने का इरादा था। नैनीताल व काठगोदाम  के बीच तल्ला गोठिया का मन्दिर देखने लायक है। हमने नहीं देखा। अगर फ़िर किसी यात्रा में मुन्डी खराब हुई तो देखेंगे? इस मन्दिर के साथ महायोगी पायलट बाबा आश्रम का बोर्ड लगा हुआ देखा।
मन्दिर से आगे बढते ही सबसे बडे रामभक्त हनुमान जी की बडी मूर्ति दिखायी दी। यह वही राम है जिनकी जन्मभूमि पर कथित शांतिप्रिय धर्म के हमलावरों ने तलवारों के दम पर बाबरी मस्जिद बना डाली थी। रामभक्तों ने इटों से उसे तोड दिया। काशी उर्फ़ बनारस के मूल ज्योतिर्लिंग मन्दिर की दीवारों पर मस्जिद की छत आज भी गवाही देती है कि यहाँ मस्जिद से पहले क्या था? मथुरा कृष्ण जन्म भूमि पर भी शांति प्रिय धर्म की मस्जिद खडी है। शान्ति प्रिय समुदाय का पूजा स्थल मन्दिर उर्फ़ मस्जिद दूसरे धर्म के पूजा स्थलों के ऊपर ही क्यों बनाये गये? इससे सिर्फ़ एक बात साबित होती है कि इन्सान के लठ/तलवार में ताकत होनी चाहिए, वो जो चाहे कर सकता है? ये भगवान, अल्ला, जीसस आदि जितने भी देवी-देवता है सब काल्पनिक प्रतीत होते है। जब धर्म के नाम पर लोग मरते है तो उस समय उस धर्म के कथित भगवान/अल्ला/जीसस/आदि कहाँ होते है? दुनिया में सिर्फ़ एक धर्म होना चाहिए जिसे इन्सानियत नाम देना चाहिए।  
काठगोदाम नजदीक आता जा रहा है सडक किनारे सफ़ेद फ़ूल के कई पेड दिखायी दिये। तुरन्त कार रुकवायी फ़ोटो लिये और आगे बढ चले। उल्टॆ हाथ वाले पहाड की ओट में चन्दा मामा ऊपर आने की कोशिश में थे। चन्द्र उदय देखना सूर्योदय देखने से कम रोचक नहीं है। अंधेरा होते-होते काठगोदाम पहुँच गये। हल्द्वानी पहुँचकर बाइपास पर जाने का ध्यान नहीं रहा। आज बाल्मीकि जयन्ती का अवकाश था जिस कारण सरकारी ठेके बन्द थे। इन ठेकों पर शाम के समय बडी रौनक रहती है। भीड के कारण हल्दवानी पार करने में काफ़ी समय खराब हो गया। रुद्रपुर आकर रात्रि भोजन की चर्चा शुरु हुई। अगले ढाबे पर खायेंगे कहते-कहते कई किमी पार हो गये। बिलासपुर पार करते ही एक ढाबे पर गाडी रोक दी। रात्रि भोजन किया गया। चार बन्दों के खाने का बिल 320 रु हुआ।
जिस ढाबे पर भोजन किया था उसने बताया कि सीधे निकल जाओ मार्ग की हालत लगभग ठीक ही मिलेगी। रामपुर पहुंचने में ज्यादा परेशानी नहीं आयी। दो दिन में पहली बार गाडी 80-90 के पार गयी थी। हाईवे पर आकर काफ़ी राहत मिली। टोल टैक्सों पर कुछ रु चुकाने से बढिया सडक पर यात्रा करने को मिल जाती है इससे इन्धन व समय की बचत होने के साथ-साथ मानव व वाहन दोनों को आराम रहता है। सडक पर गुजरते ट्रक पर कई बार बहुत मस्त लिखा रहता है। जिसको पढकर दिल खुश हो जाता है।
रात में हाईवे पर कुछ जगह तो स्ट्रीट लाईटे जली मिली। उत्तर प्रदेश में सडको पर कुछ किमी में बिजली मिलना महान आश्चर्य से कम नहीं है। दिल्ली से सहारनपुर वाले मार्ग पर जाकर देखो 170 किमी के में 17 किमी भी उजाला नहीं मिलने वाला। राजेश जी सुबह से चालक की सीट पर कब्जा जमा कर बैठे थे। एक दो बार कहा भी कि आराम चाहिए तो सीट बदल लीजिए। नहीं माने, बोले कि अभी तो पूरी रात गाडी चला सकता हूँ। लगता है टीम का असर है जिससे राजेश जी में भी जोश भर गया है। अपुन ठहरे बेशर्म टाइप के इसलिये जो मन में आता है बोल देता हूँ।
दिल्ली आते ही गाडी में गैस फ़ुल करा दी। कल भीमताल से पैट्रोल टंकी फ़ुल करायी थी। जिसमें शायद 2300/2400 का तेल आया था। आज रुद्रपुर आकर 1000 रु का तेल और डलवाया था। इस तरह लगभग 3500 रु का तेल डलवाया गया। जाते समय गैस की टंकी दिल्ली से ही फ़ुल करायी थी। लोनी मोड गोल चक्कर वाले फ़्लाई ओवर के नीचे आकर हिसाब किताब किया। मेरे हिस्से में 1600 रु आये। मेरे पास उस समय रु नहीं थे इसलिये सामने वाले SBI ATM से रु निकालकर अदा कर दिये। अजय व प्रवीण ने यात्रा के दौरान खर्च किया था उन्हे केवल 200-400 रु ही देने पडे। चार बन्दों के 6400 रु के खर्च में यह यात्रा पूर्ण हुई।

राजेश जी हम तीनों को वही छोडकर अपनी गाडी लेकर अपने घर प्रस्थान कर गये। हम तीनों पैदल ही घर की ओर चले आये। लोनी बार्डर पुलिस चौकी से अजय और प्रवीण भी अपने घर मुड गये। मेरा घर भी नजदीक ही है। घर पहुँचकर समय देखा रात के 1:30 मिनट हो गये है। सुबह नौकरी पर भी जाना था। इसलिये घर जाते ही बिस्तर पर लेटते ही नीन्द आ गयी। यात्रा समाप्त हुई। इस यात्रा के बाद खजुराहो, ओरछा व झांसी के किले की यात्रा हो चुकी है। उस यात्रा को लिखने का मौका उत्तराखन्ड की 8-9 दिन लम्बी ट्रेकिंग यात्रा के बाद ही मिल पायेगा। (The end)
































6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

दुनिया में सिर्फ़ एक धर्म होना चाहिए जिसे इन्सानियत नाम देना चाहिए।
Sandeep ji, Bilkul sahi kaha aapne. Shaandar vivran.

Sachin tyagi ने कहा…

भाई राम राम, "जाना था कही ओर पहुंच गए कही ओर"
पर यह यात्रा बढिया रही,काफी फोटो एड किये.
रास्ते मे भी कलाकारी किये बिना रह ना सके ट्रक,टैक्सी पर लिखे संदेश यहा भी छाप दिए.
मजा आ गया कलम से

Unknown ने कहा…

Mazaa aguya... Mast..

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

khana dekhkar tej bhukh agne lagi ---

Ajay Kumar ने कहा…

kisi ko bhook lagi hai kya???? kya nahi lagi,,, koi baat nahi hum hi khaa lete hai..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह... इस यात्रा के लिए और उम्दा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)

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