शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

Bike Wife & Nachiketa Taal बाइक पर पत्नी के साथ नचिकेता ताल की यात्रा

NACHIKETA TAAL-GANGOTRI-01                                                     SANDEEP PANWAR

बाइक पर नचिकेता ताल व गंगौत्री यात्रा के लेख के लिंक नीचे दिये गये है। 
01- इस यात्रा का पहला लेख नचिकेता ताल यहाँ है। 
02- उत्तरकाशी से गंगौत्री मन्दिर यात्रा 

चलो, आज एक पुरानी यात्रा के बारे में बताया जाये। बात उस समय की है कि जब श्रीमति जी मेरे साथ पहली बार किसी बाइक यात्रा पर गयी थी। मेरी सबसे ज्यादा बाइक यात्रा उतराखन्ड में ही हुई है अत: जाहिर है कि श्रीमति जी के साथ पहली बाइक यात्रा भी उतराखण्ड की ही होनी थी। हम दोनों दिल्ली से बाइक पर सवार होकर उतराखण्ड घूमने चल दिये। पहले दिन हरिदवार तक जाना तय किया था। हरिदवार में रिश्ते की बुआ की सबसे छोटी लडकी का घर है। मैं पहली बार इनके घर हरिदवार इनकी शादी के बाद इन्हे लेने के लिये गया था। उसके बाद अब इस यात्रा में दूसरी बार इनके घर आना हुआ था।



जिस वर्ष यह यात्रा की गयी थी उन दिनों मोबाइल फ़ोन का ज्यादा चलन नहीं था। मोबाइल की कॉल दर भी बहुत महंगी हुआ करती थी। अपने जैसे महाकंजूस उस समय मोबाइल के चक्कर में नहीं पडे थे। कही से हरिदवार का लैंडलाइन नम्बर पता किया। वैसे उनका घर मैने पहले देखा हुआ था। लेकिन किसी के घर इतनी दूर से जा रहे है तो पहले से सूचित करना बेहतर रहता है। कही वहाँ पहुँचने के बाद पता लगे कि सारे घर वाले कही बाहर गये है। उसके बाद घर के ना रहे, धर्मशाला के बनना पडे। उससे बेहतर, पहले ही पता कर लिया था कि वे घर पर ही मिलेंगे।
दिल्ली से दोपहर के 12 बजे के करीब चले थे। मेरठ-खतौली-मुज्फ़रनगर-रुडकी होते हुए हरिदवार पहुँच गये। अभी दिन छिपा नहीं था। सितम्बर का महीना था। सन 2004 का समय था। दिल्ली से चले थे तो गर्मी का माहौल था। इसलिये ज्यादा गर्म कपडे भी साथ नहीं लिये। हरिदवार पहुंचने के बाद ठण्डक का अहसास हुआ। बुआ की लडकी के घर के नजदीक मिठाई की दुकान थी। वही से एक किलो गुलाब जामुन ले लिये। बुआ की लडकी का एक लडका है, सास-ससुर है (एक देवर है/था) इस तरह परिवार में कुल 5 सदस्य है। जब उनके घर पहुँचे तो लगभग अंधेरा हो चुका था। श्रीमति जी को उन्होंने पहली बार देखा था अत: उनके लिये नई नवेली बहु थी। जबकि शादी हुए कई महीने बीत चुके थे।
इस यात्रा के समय हमारे घर पैशन बाइक हुआ करती थी। वह बाइक आज भी छोटे भाई के पास है। छोटा भाई मेरठ में रहता है कुछ दिन पहले भाई घर आया था तो उस बाइक का मीटर देखा। उसकी रीडिंग बता रही थी कि वह एक लाख 30 हजार किमी से ज्यादा चल चुकी है। अभी मेरे पास जो बाइक है। वह लगभग 73000 किमी चल चुकी है। इस साल मई में फ़िर से पहाडी बाइकिंग व ट्रेकिंग आरम्भ हो रही है। उस यात्रा में भी 100 किमी ट्रेकिंग के साथ 1300 किमी बाइक चलने की सम्भावना बन चुकी है।
रात में काफ़ी देर तक बैठकर बातचीत करते रहे। 12 बजने से पहले ही सोने की तैयारी हो गयी क्योंकि सुबह जल्दी चलने की तैयारी करनी थी। सुबह ताजे पानी से नहाते समय पता लग गया था कि पहाड पर ठन्ड अपना असर दिखायेगी। बुआ की लडकी ने चलते समय अपना शाल मैडम को ओढने के लिये दे दिया। उस शाल के कारण मैडम की कुल्फ़ी जमने से बच गयी। नहीं तो हमें बीच मार्ग में किसी जगह से गर्म कपडे खरीदने पडते। ऋषिकेश पहुँचते-पहुँचते सूर्य महाराज दर्शन दे चुके थे।
ऋषिकेश में राम झूला व लक्ष्मण झूला देखने लायक है। मैंने अपनी बाइक राम झूला से होकर उस पार पहुँचायी। वहाँ से लक्ष्मण झूला से होकर पुन: इस पार आ गये। इन दोनों झूला पुलों से पैदल लोगों के साथ सिर्फ़ बाइक निकलने की जगह है। कार या अन्य वाहन गंगा के उस पार ले जाने के लिये बैराज वाले पुल से होकर जाना पडता है। मैं एक बार सन 2008 में अल्टो कार लेकर सपरिवार नीलंकठ महादेव गया था तब मुझे बैराज वाले पुल से होकर ही आगे जाना पडा था। बैराज वाले पुल से जो सडक नीलकंठ जाती है वह लक्ष्मण झूले के एकदम सट कर निकलती है।
ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लगा। इस मार्ग को गंगौत्री मार्ग कहते है। ऋषिकेश से जो चढाई शुरु होती है वह चम्बा तक लगातार बनी रहती है। चम्बा वह जगह है जहाँ से धनौल्टी व मसूरी वाला मार्ग उल्टे हाथ अलग होता है जबकि सामने वाला मार्ग गंगौत्री जाता है। सीधे हाथ एक मार्ग ऊपर जाता दिखायी देता है यह मार्ग नई टिहरी शहर में पहुँचा देता है। नई टिहरी काफ़ी ऊचाई पर बसा है यहाँ बर्फ़ भी गिर जाती है। आसपास के शानदार नजारे दिखाई देते है।
चम्बा पार करते ही लगभग 20 किमी की ढलान मिलती है। इस ढलान के बाद मार्ग में चढाई उतराई लगी रहती है। यह मार्ग गंगा/भागीरथी नदी के किनारे-किनारे बना हुआ है जिस कारण उसमें मोडों की संख्या अन्य पहाडी मार्गों के अपेक्षाकृत कम दिखायी देती है। इस मार्ग पर खाने-पीने व रहने में कोई समस्या नहीं आती। गाडियों के लिये पैट्रोल व डीजल भी हर एक घन्टे की यात्रा में मिल ही जाता है। अपनी बाइक में काफ़ी पैट्रोल था जिस कारण पैट्रोल लेने की आवश्यकता नहीं थी।
चलते-चलते एक जरुरी बात बताता हूँ कि इस यात्रा के अगले साल हम दोनों एक बार फ़िर अपनी पैशन बाइक से गंगौत्री जा रहे थे। जब हमारी बाइक उत्तरकाशी से 15 किमी दूर थी कि तभी गाडी के इन्जन में कट की आवाज हुई थी। पहले सोचा कि चैन की आवाज होगी लेकिन जब बाइक ने गति पकडनी बन्द कर दी तो समझ में आ गया कि बाइक की टाईमिंग चैन या पिस्टन में कुछ गडबड हो चुकी है। बाइक रोक कर टाइपिड देखे, वे ठीक थे अब टाईमिंग चैन या पिस्टन के रिंग में ही कुछ समस्या थी जो अपनी समझ में नहीं आ रही थी। नेताला से पहले एक मन्दिर जैसा आश्रम दिखायी दिया। वहाँ बाइक की दुकान के बारे में पता किया। उन्होंने कहा कि मातली में एक बाइक की दुकान है आपको वहाँ तक बाइक लेकर जानी ही पडेगी।
मातली अभी 5 किमी बाकी था। चढाई पर बाइक चार किमी प्रति घन्टे की गति से चढती थी। जबकि उतराई आने पर बाइक ढलान होने के कारण चालीस की गति आसानी से पकड लेती थी। आधे घन्टे की कोशिश के बाद बाइक की दुकान आयी। बाइक वाले ने बताया कि पिस्टन के रिंग टूटने के कारण व टाईमिंग चैन की प्लास्टिक वाली चकरी घिसने से आपकी बाइक गति नहीं पकड पा रही है। ठीक होने में कितना समय लगेगा?
बाइक मिस्त्री ने बताया कि आपको बाइक 3 दिन बाद मिलेगी। तीन दिन क्यों? आज मैं आपका इन्जन खोल कर देहरादून भिजवाता हूँ। वहाँ से कल रात तक पिस्टन होकर वापिस आयेगा। तब मैं परसो तक आपकी बाइक सही कर पाऊँगा। अच्छी मुसीबत है। बाइक वही छोडकर बस में बैठ उत्तरकाशी पहुँचे थे। उत्तरकाशी पुलिस लाइन के पास ज्ञानसू गाँव में छोटा भाई रहता था। उसने बाइक के बारे में पूछा। बाकि बाते उसे बतायी। उस यात्रा में बाइक खराब होने से अन्य जगह जाने का इरादा त्यागना पडा था। तीन दिन बाद बाइक ठीक हुई। जिसके बाद इन्जन रवा होने तक बाइक पर डबल सवारी नहीं की जा सकती थी इसलिये वापसी में बाइक को भाई लेकर आया था। हम दोनों बस में बैठकर दिल्ली आये थे।
अब आते है अपनी इस यात्रा पर- उत्तरकाशी पहुँचने के अगले दिन हम दोनों बाइक लेकर नचिकेता ताल के लिये चल दिये। उत्तरकाशी से नचिकेता ताल जाने के लिये 32 किमी सडक मार्ग है वहां चौरंगीखाल से 3 किमी पैदल मार्ग है। लगातार चढाई पर दो घन्टे बाइक चलाकर चौरंगीखाल पहुँचे। चौरंगीखाल में सर्दियों में जोरदार बर्फ़ गिरती है। इस मार्ग पर बहुत कम वाहन चलते है। उत्तरकाशी से केदारनाथ या बद्रीनाथ जाने के लिये यह काफ़ी छोटा मार्ग है। यह मार्ग एक पहाड को पार कर बूढाकेदार भी जाता है। यही मार्ग आगे चलकर चमियाला होते हुए घनस्याली से निकलकर रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी जाने वाले मार्ग पर जा मिलता है। चौरंगी खाल में एक रेस्ट हाऊस है जहाँ रात्रि विश्राम किया जा सकता है। बेहद सुन्दर जगह है।
बाइक सडक किनारे बनी चाय की दुकान के किनारे लगाकर पैदल चल दिये। दुकान वाले से खाने के बारे में पता किया तो उसने कहा कि जब तक आप लोग वापिस आओगे। मैं परांठे बनाता मिलूँगा। तीन किमी की ट्रेकिंग में उबड-खाबड पगडन्डी पर चलते हुए नचिकेता ताल पहुँच गये। इस यात्रा में मेरे पास रील वाला कैमरा हुआ करता था। जिसमें काफ़ी कंजूसी करते हुए फ़ोटो लेने होते थे। नचिकेता ताल का एक चक्कर लगाकर ताल को अच्छी तरह देखा। झील के आसपास घना जंगल है जहाँ से ज्यादा दूरी तक देखना मुमकिन नहीं हो पाता है।
इस ताल के बारे में बताया जाता है कि यह ताल वैदिक युग के वाजश्रवा ऋषि पुत्र नचिकेता के यहाँ तपस्या करने के कारण नचिकेता ताल कहलाता है। नचिकेता के पिता ने सर्वस्व दक्षिणावाला विश्वजित यज्ञ किया था। जब नचिकेता अपने पिता से खुद के दान करने की जिद पकड बैठा तो इनके पिता ने इनसे नाराज होकर अपने पुत्र को कहा, जा तुझे यमलोक को दिया। यमलोक में नचिकेता ने ब्रहमविदया सीखी।
यह छोटी सी ताल है जहाँ तक आम लोग सीमित संख्या में आते है। घन्टा भर वहाँ रुके। गिने चुने फ़ोटो लेने के बाद पैदल चलते हुए सडक के लिये चल दिये। वापसी में एक मोड के ढलान पर गिरे सूखे पत्तों पर मैडम जी का पैर फ़िसल गया। जिससे मैडम जी के नय़े पाजामे में घुटने पर एक कट लग गया। मैडम जी का घुटना भी जख्मी हुआ था लेकिन मैडम जी को घुटना फ़ूटने का दुख नहीं था। दुख तो यह था कि नये पाजामे में कट लग गया। मैडम जी जब भी वह पाजामा पहनती थी उस घटना को जरुर दोहराया करती थी।
सडक पर आने के बाद चाय की दुकान पर पहुँचे। चाय वाले ने अब तक परांठे बना दिये थे। मुझे चाय से कोई वास्ता नहीं था दो-दो परांठी खाने के बाद बाइक पर सवार होकर उत्तरकाशी जाने के लिये चल दिये। उत्तरकाशी तक लगातार ढलान है जिस कारण बाइक स्टार्ट करने की आवश्यकता नहीं पडी। पहाडों की यात्रा में बाइक का यही लाभ रहता है कि ढलान पर तेल बचा लिया जाता है। कार या अन्य बडी गाडियों में इन्जन स्टार्ट रखना मजबूरी होता है। कुछ गाडियों का इन्जन बन्द करते ही हैंडिल भी लॉक हो जाता है जिससे वाहन पर नियंत्रण नहीं रह पाता है।
अगले दिन हमारा कार्यकम उत्तरकाशी स्थित जवाहर लाल नेहरु के नाम पर नेहरु पर्वतारोहण संस्थान देखने का बना। यह संस्थान मैंने दो बार देखा है। इस जगह की दूरी भाई के घर से 5 किमी के करीब थी। आना-जाना पैदल ही किया गया था। वापसी में उत्तरकाशी का बाजार देखते हुए भाई के घर पहुँचे थे। उत्तरकाशी शहर में जोशीयाडा में भी एक झूला पुल है जिसे देख ऋषिकेश के लक्ष्मण झूले की याद हो आती है। सुना है कि सन 2013 में जून माह में आयी भयंकर बारिश से यह झूला पुल टूट गया है। अभी यह पुल ठीक कर दिया गया होगा। क्योंकि इस पुल के बिना उत्तरकाशी की जनता को बहुत समस्या आती है।
पहले दिन उत्तरकाशी पहुँचे। अगले दिन नचिकेता ताल देखने गये। उसके बाद नेहरु पर्वतारोहण संस्थान देखा। अगले दिन मैडम को गंगौत्री दर्शन कराने का इरादा था। सुबह उजाला होते ही गंगौत्री के लिये चल दिये। गंगौत्री दर्शन व वापसी की यात्रा अगले लेख में बतायी जायेगी। (यात्रा जारी है।)











3 टिप्‍पणियां:

Vaanbhatt ने कहा…

जाट देवता का खजाना खाली नहीं होता...

Sachin tyagi ने कहा…

भाई यह पोस्ट कहां बचा कर रखी थी इतने दिनो से.
बढिया रही यात्रा.

राजेश सहरावत ने कहा…

जाट देवता आपकी मेमोरी तो यात्राओं की कहानियों से 99% फुल होगी

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