मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

All journey in year 2014 by Sandeep Panwar सन 2014 में संदीप पवाँर की यात्राएँ


दोस्तों, मेरे जैसे घुमक्कड बन्धु साल भर नये-नये प्रदेश देखने जाते रहते है। चूंकि घुमक्कडी सनक अपुन पर भी सवार है तो मुझे जब भी मौका मिलता है तो घर परिवार बच्चों को घर छोडकर घूमने चला जाता हूँ। साल में दो-तीन मौके ऐसे भी आते है जब सपरिवार यात्रा करने का मौका मिलता है। आज के लेख में आपको वर्तमान साल सन 2014 में की गयी यात्राओं के बारे में बताया गया है।


इस साल नये साल वाले दिन ही कश्मीर यात्रा के लिये सपरिवार जाना हुआ था। इस यात्रा में कश्मीर की डल झील, निशात बाग, शालीमार बाग व अन्य बाग के अलावा पहलगाम यात्रा की गयी थी।  इस यात्रा के बारे में आपको सचित्र विवरण बताया जा चुका है। जिसका लिंकयहाँ है। इस लिंक पर क्लिक कर आप इस यात्रा को पढ व देख सकते है।






बीकानेर यात्रा में राकेश के साथ लडेरा गाँव स्थित मरुभूमि महोत्सव देखने का कार्यक्रम बनाया गया था। इस यात्रा के बारे में आपको सचित्र विवरण बताया जा चुका है। जिसका लिंक यहाँहै। इस लिंक पर क्लिक कर आप इस यात्रा को पढ व देख सकते है।




सरिस्का के वन की यात्रा उलाहेडी निवासी अशोक भाई के सौजन्य से की गयी थी। इस यात्रा में भानगढ के भूतों का किला भी देखा गया था। इसके अलावा नीमराणा की बहुमंजिला बावडी भी देखी गयी थी। इस यात्रा के बारे में आपको सचित्र विवरण बताया जा चुका है।जिसका लिंक यहाँ है।इस लिंक पर क्लिक कर आप इस यात्रा को पढ व देख सकते है।




शनिवार, 1 नवंबर 2014

Sandeep Panwar's Life book October 2014 संदीप पवाँर की जीवनी- अक्टूबर २०१४

NOVEMBER माह 2014 में आने वाले मुख्य त्यौहार /अवकाश /तिथि निम्न है।
Nov 01 : All Saints' Day सर्व सन्त दिवस
Nov 02 : All Souls' Day सर्व आत्मा दिवस
Nov 04 : Day of Moharam मोहरम
Nov 06 : Kartik Poornima कार्तिक पूर्णिमा
Nov 06 : Guru Nanak Birthday गुरु नानक जन्मदिवस
Nov 24 : Guru Tegh Bahadur Martyrdom गुरु तेग बहादुर निर्वाण दिवस
Nov 27 : Thanksgiving (USA) धन्यवाद दिवस
बीते माह October 2014 की आपबीती का विवरण नीचे दिया है।

बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

Sandeep Panwar's Life book September 2014 संदीप पवाँर की जीवनी- सितम्बर २०१४

OCTOBER माह में आने वाले मुख्य त्यौहार /अवकाश /तिथि निम्न है।

Oct 03 : NAVRATRA ENDS नवरात्रि समाप्त
Oct 03 : HAJJ हज
Sep 04 : BAKRA ID बकरा काट ईद
Oct 04 : DASHERA दशहरा
Oct 07 : LAXMI POOJA लक्ष्मी पूजा
Oct 11 : KARWA CHAUTH करवा चौथ
Oct 09 :  GURU RAM DAS  गुरु राम दास जयन्ती
Oct 21 : DAN TERUS धन तेरस
Oct 23 :   DEWALI दीवाली

बीते माह SEPTEMBER 2014 की आपबीती का विवरण नीचे दिया है।


सोमवार, 1 सितंबर 2014

Sandeep Panwar's Life book August 2014 संदीप पवाँर की जीवनी- अगस्त २०१४



SEPTEMBER माह में आने वाले मुख्य त्यौहार /अवकाश /तिथि निम्न है।
Sep 07 : Onam ओणम
Sep 09 :  Pitr-Paksha begins पितृ पक्ष आरम्भ
Sep 24 : Pitr-Paksha ends पितृ पक्ष समाप्त
Sep 25 : Navaratri begins नवरात्रि आरम्भ
Sep 30 : Durga Puja begins दुर्गा पूजा आरम्भ
Sep 29 : Michael and All Angels  
बीते माह AUGUST 2014 की आपबीती का विवरण नीचे दिया है।

बुधवार, 27 अगस्त 2014

Kampty Fall-Mussoorie to Delhi कैम्पटी फ़ॉल मसूरी से दिल्ली तक

BIKE YATRA WITH WIFE-03

पेंचर वाली बाइक मोड पर ही थोडा गडबड करती थी अन्यथा बाइक आसानी से 40 की गति से दौडी जा रही थी। सीधी सडक पर बाइक चलाने में कोई समस्या नहीं आयी। जहाँ सडक खराब आती थी वही बाइक ज्यादा धीमे निकालनी पडती थी। ट्यूब कटने की चिन्ता नहीं थी। उसके बारे में तो सोच ही लिया था कि नई डलवानी ही पडेगी। 
इस यात्रा के तीनों लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से हरिदवार व ऋषिकेश यात्रा।
02- उत्तरकाशी से यमुनौत्री मन्दिर तक
03- कैम्पटी फ़ॉल, मसूरी देहरादून दिल्ली तक

बुधवार, 20 अगस्त 2014

Trekking to Yamunotri temple यमुनौत्री मन्दिर की ट्रेकिंग

BIKE YATRA WITH WIFE-02

ऋषिकेश से उत्तरकाशी का मार्ग कई बार देखा जा चुका है इसलिये पता रहता है कि अब कौन सी जगह आयेगी? ऋषिकेश से चलते ही चढाई आरम्भ हो जाती है यह चढाई नरेन्द्रनगर होते हुए नागनी, फ़कोट जैसी जगहों से होती हुई आगे बढती है। चम्बा जाकर ही इस लगातार चढाई से छुटकारा मिल पाता है। चम्बा में हर सुविधा उपलब्ध है। चम्बा से आगे का मार्ग ढलान वाला है पहले यह मार्ग टिहरी डैम के निर्माधीन इलाके से होकर जाता था। जहाँ अब टिहरी झील का पानी होने से वह मार्ग पानी के नीचे समा चुका है। मैंने पुराना टिहरी शहर कई बार देखा है। शुरु की कुछ यात्रा बस की थी जिससे मुझे पुरानी टिहरी में गंगा पार बने बस अडडे तक जाने का मौका लगा था।
इस यात्रा के तीनों लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से हरिदवार व ऋषिकेश यात्रा।
02- उत्तरकाशी से यमुनौत्री मन्दिर तक
03- कैम्पटी फ़ॉल, मसूरी देहरादून दिल्ली तक

Bike trip with wife-Haridwar & Rishikesh हरिदवार व ऋषिकेश यात्रा बाइक पर पत्नी के साथ

BIKE YATRA WITH WIFE-01

सन 2005 के जून माह की शुरुआत में एक बार मैडम जी के साथ उत्तराखन्ड के पहाडों की यात्रा का बाइक कार्यक्रम बना था। इस यात्रा में हमारे साथ श्रीखण्ड महादेव यात्रा में बीच से लौटकर आने वाले नितिन व उसकी नई नवेली मैडम जी अपनी TVS विक्टर बाइक पर हमारे साथ गयी थी। इस यात्रा के समय तक अपने पास हीरो होन्डा की पैसन बाइक ही हुआ करती थी। इसी साल के अन्तिम माह में आज वाली नीली परी हीरो होन्डा की एमबीसन बाइक अपने बेडे में शामिल हो गयी थी। इस यात्रा में हमने दिल्ली से हरिदवार से नीलकंठ से उतरकाशी से (गंगौत्री नितिन ही गया था) यमुनौत्री से मसूरी से देहरादून से दिल्ली तक की यात्रा की थी जिसका विवरण इस यात्रा में बताया जा रहा है। 
इस यात्रा के तीनों लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से हरिदवार व ऋषिकेश यात्रा।
02- उत्तरकाशी से यमुनौत्री मन्दिर तक
03- कैम्पटी फ़ॉल, मसूरी देहरादून दिल्ली तक


शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

Jhansi to Delhi ( controversial train journey ) झांसी के प्लेटफ़ार्म पर विवाद के बाद ट्रेन यात्रा

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-13                               SANDEEP PANWAR, Jatdevta
 इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।
01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद

आज का लेख इस यात्रा का आखिरी लेख है। आज के लेख में दिनांक 28-04-2014 को की गयी यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। यदि आपको इस यात्रा श्रृंखला के बारे में शुरु से पढना है तो ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करे। इस यात्रा में अभी तक आपने खजुराहो, ओरछा, व झांसी किले की शानदार यात्रा के बारे में देखा व जाना। अब उससे आगे। झांसी का किला देखने के बाद, किले से बाहर निकला तो किले की दीवार के पास एक लडका खाने की कोई वस्तु बेच रहा था। मुझे मालूम नहीं था कि उसका नाम क्या है? उसने नाम बताया भी था लेकिन अब याद नहीं आ रहा है। यह वस्तु देखने में पतले-पतले पापड की चूरे जैसे लग रही थी। अरे भाई यह खाने में कैसी लगती है? उसने जवाब दिया, “नमकीन जैसी लगेगी।“ ठीक है दस रुपये की बना दे। उसने दस रु की पापड के चूरे जैसी चीज मुझे दे दी। नमकीन चीज खाता हुआ किले के सामने वाली सडक पर आ गया। यहाँ से झांसी के रेलवे स्टेशन जाने के लिये तिपहिया ऑटो मिल जाते है।

सोमवार, 4 अगस्त 2014

Rani Lakshmi bai's Jhansi Fort रानी लक्ष्मीबाई वाला झांसी का किला

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-12                               SANDEEP PANWAR, Jatdevta
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद

आज के लेख में दिनांक 28-04-2014 को की गयी यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। यदि आपको इस यात्रा के बारे में शुरु से पढना है तो ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करे। इस यात्रा में अभी तक आपने पढा कि मैं खजुराहो, ओरछा भ्रमण करने के बाद झांसी पहुँच गया। झांसी व उसके आसपास कई स्थल देखने लायक है उनमें झांसी का किला सर्वोपरी है। देश को अंग्रेजो से मुक्त कराने की पहली लडाई में बुन्देलखन्ड के वीरों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से जमकर मुकाबला किया था। सन 1857 के गदर में बुन्देलखन्ड के वीरों ने अंग्रेजों की हालत खराब की थी।

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

Sandeep Panwar's Life book July 2014 संदीप पवाँर की जीवनी- जुलाई २०१४

AUGUST माह में आने वाले मुख्य त्यौहार व अवकाश निम्न है।

AUG 01 Naag panchmi
AUG 10 Raksha Bandan
AUG 15 Independance Day
AUG 15 The Assumption of Mary
AUG 17 Krishna Janmashtami
Aug 29 Ganesh Chaturthi

बीते माह JULY 2014 की आपबीती का विवरण नीचे दिया है।

सोमवार, 28 जुलाई 2014

Orccha -Raya Parveen Mahal and Jhansi ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी प्रस्थान

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-11

इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद

आज के लेख में दिनांक 28-04-2014 को की गयी यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। यदि आपको इस यात्रा के बारे में शुरु से पढना है तो ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करे। इस यात्रा में अभी तक आपने पढा कि खजुराहो के बाद ओरछा यात्रा में जहाँगीर महल देखने के बाद आगे चल दिये। बाहर आते ही रेल वाला अमेरिकी पेट्रिक मिला। हमारा फ़ोटो लेने के बाद वह जहाँगीर महल के अन्दर चला गया। हम राय प्रवीन देखने चल दिये। राय प्रवीण महल की कहानी भी काफ़ी मजेदार है। बुन्देल राज्य की सबसे होनहार गायिका, नृतिका व गीतकार का दर्जा इसी प्रवीण राय को प्राप्त था। राय प्रवीण की यही प्रसिद्दी इसकी मुसीबतों का कारण भी बन गयी। इनकी चर्चा मुगल बादशाह के कानों में भी पहुँची तो मुगल बादशाह ने ओरछा के राजा से कहा कि राय प्रवीण हमारे दरबार की शोभा बढायेगी। आखिरकार मुगल बादशाह ने राय प्रवीण को आगरा बुलवा लिया। यह गायिका राय प्रवीण भी पहुँची हुई चीज थी।

बुधवार, 23 जुलाई 2014

Orccha- Jahangir Mahal ओरछा का जहाँगीर महल

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-10

इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद

आज के लेख में दिनांक 28-04-2014 को की गयी यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। यदि आपको इस यात्रा के बारे में शुरु से पढना है तो ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करे। इस यात्रा में अभी तक आपने पढा कि खजुराहो के बाद ओरछा यात्रा में ओरछा का किला देखने पहुँचा ही था कि मुकेश जी का फ़ोन आ गया। मुकेश जी अपने कहे अनुसार मात्र 5 मिनट में ही किले के प्रवेश द्वार पर पहुँच गये। मुकेश जी ने अपनी बाइक टिकट खिडकी के पास ही खडी कर दी। कल रात हम दोनों ने यही पर लाईट एन्ड साऊंड शो देखा था। जिसमें मुकेश जी के नाना जी भी साथ थे। अब दिन में नाना जी साथ नहीं आये। रात में किला देखना और अगले दिन उसे दिन के उजाले में देखना एक अलग ही अनुभव रहा। मुकेश जी बोले चलो संदीप जी पहले जहाँगीर महल देखने चलते है। किले के अन्दर जाने वाले दरवाजे अभी बन्द थे।
जहाँ मुकेश जी ने अपनी बाइक खडी की है उसके ठीक बराबर में एक विशाल दरवाजा है। इस दरवाजे के ठीक पार एक बोर्ड लगा हुआ है उस बोर्ड पर लिखा है कि राजा महल, जहाँगीर महल व शीश महल सीधे हाथ वाली दिशा में है जबकि नाक की सीध में जाने पर राय प्रवीण महल व हमाम खाना आदि के लिये जाया जा सकता है। वैसे भी जहाँगीर महल जाने का मुख्य मार्ग भी राय प्रवीण महल के सामने से होकर जाता है। हम वापसी में इसी मार्ग से आये थे। रात वाली सीढियों से चढते हुए जहाँगीर महल के सामने बने शीश महल पहुँच गये। रात को भोजन यही किया गया था। यहाँ के कर्मचारी व अधिकारी मुकेश जी को अच्छी तरह जानते है। आखिर आबकारी विभाग के अफ़सर जो ठहरे। आबकारी विभाग के अधिकारी को होटल वाले ना पहचाने ऐसा कैसा हो सकता है?
रात में जिन सीढियों पर टार्च की जरुरत आन पडी थी दिन में उन सीढियों की हालत देखी। अंधेरे में इन सीढियों पर आवागमन खतरे से खाली नहीं है। शीश महल राजाओं के समय में मेहमान खाना हुआ करता था। आजकल यह सरकारी होटल में बदल दिया है। सरकार ने यह बहुत ही अच्छा किया कि मेहमान खाने में आज भी मेहमान को ठहराने का प्रबन्ध किया जाता है। उस समय राजाओं के मेहमान मुफ़्त में यहाँ ठहरा करते होंगे जबकि आज यहाँ ठहरने के दाम चुकाने पडते है। सुख सुविधा में आज भी वैसा ही ठाट-बाट देखने को मिलता है जैसा राजाओं के काल में होता होगा। मुकेश जी ने शीश महल के एक कर्मचारी से कहा कि जहाँगीर महल देखना है इसका दरवाजा कौन खोलेगा? वैसे जहाँगीर महल खुलने में कुछ मिनट बाकी थे। शीश महल के कर्मचारी ने जहाँगीर महल खोलने वाले कर्मचारी से पूछा कि क्या दरवाजा खोल दिया गया है उसने कहा, हाँ दरवाजा खुला है आप लोग अन्दर जा सकते है।
ओरछा में कई महल है जिनमें राजनिवास, जहाँगीर महल, राजमहल, शीश महल प्रमुख है। आजकल इन सब में जहाँगीर महल को लोग सबसे ज्यादा देखने आते है। इस महल के बनने के पीछे बुन्देल राजा व मुगल बादशाह जहाँगीर की दोस्ती होना मुख्य वजह रहा है। इतिहास अनुसार निर्दयी क्रूर मुगल बादशाह अकबर (कुछ इतिहासकार जिन्होंने अकबर के पैसे खाये होंगे उन्होंने अकबर को तथाकथित रुप से महान बताने का षडयंत्र चलाया) ने अपने खास सेनानायक अबुल फ़जल को इकलौते शहजादे बागी सलीम उर्फ़ जहाँगीर को काबू में करने के लिये भेजा था। अबुल फ़जल सलीम को काबू कर पाता? उससे पहले सलीम की बुन्देल राजा वीरसिंह देव के साथ दोस्ती हो गयी। राजा वीरसिंह देव ने अबुल फ़जल का कत्ल करवा दिया। सलीम ने मुगल बादशाह बनने के बाद वीरसिंग देव को ओरछा जागीर की पूरी जिम्मेदारी दे दी थी। राजाओं महाराजाओ के समय दोस्ती दुश्मनी की कहानी बहुत देखने सुनने को मिलती है। जिसमें कई बार विश्वास करना भी मुश्किल हो जाता है यह हकीकत में हुआ भी होगा कि नहीं?
यहाँ आने से पहले इस महल की वास्तुकला के बारे में बहुत सुना था आज पहली बार इस महल को जानने परखने का मौका मिल रहा है। जहाँगीर महल में घुसते ही जो नजारा आँखों के सामने आया उसे देख आँखे खुली रह गयी। यहाँ पर सबसे ज्यादा काम पत्थरों पर किया गया है। इस महल को हवा महल भी कह दे तो ज्यादा गलत नहीं होगा। इस महल की चारों दीवारों में पत्थर की सैंकडों जालियाँ वाली खिडकी है। सबसे बडा कमाल तो यह है कि हर जाली एक दूसरे से अलग बनी हुई है। कोई भी दो जाली एक जैसी नहीं है। मैंने शुरु में सभी जालियों के अलग होने वाली बात पर ध्यान नहीं दिया था।
जब मुकेश ने मुझसे पूछा कि इन जालियों में क्या कुछ विशेष दिखता है? तब मैंने इन्हे छूकर देखा। इससे पहले मैं सोच रहा था कि यह लकडी की बनी जालियां होंगी। लेकिन हाथ लगाकर पता लगा कि यह पत्थर की बनी जालियाँ है। मुकेश जी ने यह कहकर मुझे आश्चर्यचकित कर दिया कि यहाँ की सभी जालियाँ डिजाइन में एक दूसरे से अलग है। मैंने अब तक लिये गये फ़ोटो देखे तो मुकेश जी बात सही निकली। अब मैंने आगे आने वाली  सभी जालियों को बारीकी से देखना आरम्भ कर दिया।
यह महल तीन मंजिल का बना है। जिसमें प्रत्येक मंजिल की वास्तुकला कमाल की है। यहाँ का खुला गलियारा देखने लायक है। यहाँ के वास्तुशिल्प की एक खास बात मुकेश जी ने बतायी कि यहाँ की वास्तुशिल्प हिन्दू व मुस्लिम वास्तुकला का मिलाजुला संगम है। मुकेश जी ने इनका अन्तर भी दिखाया कि वो देखो एक किनारा हिन्दू शिल्प से बना है तो दूसरा किनारा मुस्लिम वास्तुकला को समेटे हुए है। जानवरों की मूर्तियाँ से लेकर पत्तों व फ़ूलों आदि के डिजाइन यहाँ देखे जा सकते है। इस महल के बीचो-बीच एक जगह ऐसी है जहाँ पर पत्थर की शिला पर बैठने का स्थान बनाया गया है। यहाँ बैठकर फ़ोटो लेते समय आगरे के तेजो महालय (ताज महल का असली नाम) की याद हो आयी। हमने इस शिला पर बैठकर फ़ोटो लिया और अपने आगे के कार्य में लगे गये।
इस महल में घूमते समय मुकेश जी ने अपना फ़र्ज जमकर निभाया। यहाँ पहली बार मुझे लगा कि मुकेश जी अपनी जैसे खोपडी वाले इन्सान है। जब एक जैसे आचार-विचार के दो मानव एक साथ किसी कार्य में लगे हो तो उस कार्य को करने में अलग सुकून मिलता है। यही सुकून हम दोनों को महसूस हो रहा था। मुकेश जी इस महल में कई बार आ चुके है। मैंने कहा, कई बार क्यों? वीआईपी लोगों के साथ अक्सर यहाँ आना पडता है उनके साथ गाइड भी होता है। गाइड जो बाते उन्हे बताता है वे बाते मुझे किसी फ़िल्म की तरह याद हो गयी है इसलिये इस महल में घुसते ही गाइड वाली फ़िल्म मेरे दिमाग में चालू हो जाती है। मुकेश की याददास्त कमाल की है। वैसे भी मुकेश भाई अपनी तरह इतिहास विषय के प्रेमी है। इतिहास विषय भी बडा कमाल का है इसमें जितना घुसो इसमें उतना रोमांच बढता जाता है।
बीते लेख में मैंने आपको यहाँ के इतिहास की कुछ खास बाते बतायी थी आज उसकी दूसरी किस्त में कुछ अन्य बाते बताता हूँ। बुन्देल के वीर हरदौल के बारे में मैंने बीते लेख में जिक्र किया था। ओरछा के लोक गीत संगीत में हरदौल का अहम स्थान है। एक समय ऐसा आया था जिसमें ओरछा राज्य में मुगल जासूसों का काफ़ी प्रभाव हो गया था। यह समय 1625-30 के आसपास का रहा होगा। मुगल जासूसों की साजिशों के कारण यहाँ के राजा को यकीन दिया दिया गया कि उसके भाई हरदौल के उसकी रानी के साथ अवैध सम्बन्ध है। हरदौल अपने बडे भाई का आज्ञाकारी था। राजा ने अपनी रानी को परखने के लिये कहा कि यह लो जहर। इसे ले जाकर हरदौल को पिला दो।
रानी जहर लेकर हरदौल के पास गयी तो सही, लेकिन उसे जहर नहीं पिला सकी। रानी ने हरदौल को सारी बात बता दी। हरदौल ने खुद को व रानी को निर्दोष साबित करने के लिये वह जहर खुद ही पी लिया। मुगल बादशाहों की राह में हरदौल एक बहुत बडे कांटे की तरह था। जिसे वे किसी भी कीमत पर हटाना चाहते थे। हरदौल के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत बलशाली थी। जिसके आगे मुगलों की एक ना चलती थी। ताकत के बल पर उसको जीतना मुमकिन नहीं था। इसलिये मुगलों ने ऐसी कुटिल चाल चली थी। हरदौल जहर पीने के बाद चल बसा। राजा को अपनी गलती पर बडा पश्चाताप हुआ। यही से ओरछा के बुन्देल राज्य का पतन आरम्भ होना शुरु हो गया था। ओरछा का बुन्देल शासन सन 1783 में समाप्त हो गया।
जहाँगीर महल में कुल 136 कमरे बताये जाते है। इन सभी कमरों में शानदार चित्रकारी भी की गयी थी। आज चित्रकारी मुश्किल से ही देखने को मिलती है। समय बीतने के साथ चित्रकारी के रंग गायब होते जा रहे है। महल की सभी चौखट पत्थर की बनी हुई है। दरवाजे लकडी के है। मैं सोच रहा था कि चौखट भी लकडी की ही होंगी लेकिन मुकेश जी ने बताया तो मैंने उनकी जाँच की थी। सहसा मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई पत्थर में भी इतनी नक्काशी कर सकता है? यहाँ की हर चीज में हिन्दू मुस्लिम शैली का संगम है जो पत्थर की चौखट में भी देखने को मिलता है। चौखट के बाद ऊपर की मंजिल की चलते है।
सीढियों से ऊपर चलते समय मुकेश जी बोले। संदीप जी रुको। मैंने समझा, आगे कुछ गडबड है जिस कारण मुझे रुकने को कह रहे है। दीवार पर चारों एक छज्जा बनाया गया है इस छज्जे में हाथियों की मूर्तियाँ वाले स्तम्भ बनाये है। एक लाईन हाथियों की है जो अपनी सून्ड में कमल का फ़ूल लटकाये हुए किसी का स्वागत करते हुए दिख रहे है तो दूसरी लाईन में मुस्लिम शैली के साधारण स्तम्भ दिखायी देते है। मुस्लिम शैली तो बेजान दिखती है। जिसमें जीवन जैसे क्रिया वाले शिल्प नदारद रहते है।
जहाँगीर महल की छत से राज महल, चतुर्भुज मन्दिर, शीश महल के अतिरिक्त ओरछा की झलक भी दिखायी देती है। जहाँगीर महल की बेतवा किनारे वाली जालियों से बेतवा नदी भी  दिखायी देती है। जहाँगीर महल के आसपास बहुत जगह खाली दिखायी देती है। राजाओं के काल में इस खाली पडी भूमि में सेना आदि के रहने का प्रबन्ध किया जाता होगा। ओरछा पथरीली भूमि वाला इलाका है। यहाँ से जिधर नजर जाती है हरियाली युक्त पथरीली भूमि दिखायी देती है।
महल की छत पर भ्रमण करने के दौरान महल के सबसे ऊपर वाले गुम्बद पर एक चील/गिद्द बैठा दिखायी दिया। गिद्द की नजर हमारी ओर नहीं थी। मुकेश जी बोले संदीप जी उसका एक फ़ोटो लीजिए ना। गिद्द आसानी से कैमरे की पकड में नहीं आ रहा था। हमने कुछ देर तक उसके दाये-बाये होने की प्रतीक्षा की, लेकिन वह अपनी जगह से टस से मस ना हुआ तो हमें अंदेशा हुआ कि कही यह गिद्द नकली तो नहीं है। शुक्र रहा कि थोडी देर बाद गिद्द ने अपनी मुन्डी थोडी सी हिलायी तो पक्का हो गया कि गिद्द पत्थर का नहीं है। हम इसी आशा से आगे बढे कि हो सकता है कि आगे किसी अन्य किनारे से गिद्द कोई अच्छा पोज दे ही दे।
जहाँगीर महल की पत्थर से बनी जालीदार खिडकियाँ और इनमें बने मोर आदि के चित्र एकदम जीवंत दिखायी देते है। यहाँ बनी सभी जालीदार खिडकियाँ एक दूसरे से अलग है मुझे इस बात पर बडा ताज्जुब हुआ कि कारीगरों ने कितनी सावधानी व मेहनत से इन जालियों को बनाया होगा। यहाँ सैकडों जालियाँ है जो सभी पत्थर की बनी हुई है। इन सभी को बनाने के लिये पत्थर पर छैनी-हथौडे का प्रयोग किया गया है। पत्थर की इन जालियों में छैनियों के निशान आज भी ऐसे दिखायी देते है जैसे इन्हे कुछ दिन पहले बनाकर यहाँ स्थापित किया गया हो।  
हमारी दोस्ती ने जहाँगीर महल की घुमक्कडी का जमकर लुत्फ़ उठाया। झरोखों में खूब फ़ोटो लिये। जब दोनों मनमौजी एक जैसे विचार वाले हो तो फ़िर मस्ती करने से कौन रोक सकता है? मैं सोच रहा था कि मुकेश जी शर्मीले स्वभाव के होंगे लेकिन यहाँ उनके साथ घूमते हुए दिल खुश हो गया। फ़ोटोग्राफ़ी के मामले में मुकेश जी कम नहीं थे। हम दोनों फ़ोटो लेने लायक लोकेशन तलाश लेते थे। जिसको अच्छी लोकेशन मिलती थी कैमरा उसके हाथ में पहुँच जाता था। यहाँ किसने ज्यादा फ़ोटो लिये कहना मुश्किल है।
यहाँ के बारे में मेरे वर्दीधारी दोस्त मुकेश चन्दन पाण्डेय जी ने घुमक्कडी करते समय गाइड का रोल भी बखूबी निभाया। यहाँ के हर कोने में हिन्दू व मुस्लिम शैली के वास्तुशिल्प का उदाहरण सामने मिलता था। एक दीवार पर हिन्दू शैली मिलती थी तो उसके ठीक सामने वाली दीवार मुस्लिम वास्तुशिल्प का लबादा ओढे मिलती थी। मैं भारत के सैंकडो स्थलों की यात्रा की है। इस प्रकार की मिली जुली संस्कृति मुझे अन्य किसी स्थल पर देखने को नहीं मिली।
जहाँगीर महल में बहुत सारी बाते ऐसी थी जिनमें कुछ ना कुछ खास था लेकिन मुझे यहाँ की सबसे महत्वपूर्ण वास्तु शिल्प पत्थर वाली जाली में बनाया गया सुराख ने मुझे खासा प्रभावित किया था। पत्थर वाली जाली में एक सुराख देखा। यहाँ के पत्थरीले जालीदार झरोखों की जालियों में छोटे-छोटे सुराख देखकर मैं दंग रह गया। जाली बनाने तक तो बात फ़िर भी ठीक थी। इन जालियों में सुराख बनाने वाली कारीगरों की वास्तुकला को मेरा सलाम। इन सुराखों को बनाने के क्रम में ना जाने कितनी जाली जालियाँ पूरी होने से पहले टूट गयी होंगी? फ़िर भी कारीगरों की मेहनत काबिल तारीफ़ है।
यहाँ जहाँगीर महल के बीचों बीच एक फ़ुव्वारा लगाने वाला स्थल भी है। महल के प्रांगण में अष्टकोणीय कुन्ड बने हुए है। इन कुन्डों में भी दोनों शैली (हिन्दू-मुस्लिम) का मिला जुला रुप है। महल के प्रांगण में आकर एहसास होता है कि हम किसी विशाल हवेली के अन्दर खडे है। इस जगह का नाम महल अवश्य है लेकिन इसका क्षेत्रफ़ल राजस्थान की बडी हवेलियों जैसा है। राजस्थान की कई हवेलियाँ इससे बडी भी हो सकती है। इस महल के भीतर का देखने लायक सब कुछ देख लिया तो बाहर आने की बारी थी। महल से बाहर आते समय मुकेश जी ने मुझे मुख्य दरवाजे के ठीक ऊपर वाली छत पर देखने को कहा। मैंने ऊपर देखा तो ऐसा लगा जैसे नीच का ऊपर फ़र्श से जाकर छत से चिपक गया हो। छत पर फ़र्श जैसा मारबल कैसे बनाया गया होगा?
मुख्य दरवाजे की छत ने मुझे अचम्भित कर दिया। उस उलझन से बाहर निकल कर दरवाजे पर पहुँचा तो मुकेश जी बोले संदीप जी यहाँ मुख्य दरवाजे के पत्थर में की गयी शानदार नक्काशी देखिये। यहाँ भी दोनों शलियाँ दिखायी दी। दरवाजे की चौखट में दो विभिन्न प्रकार के रंग देखने को मिले। मुझे लगा कि यहाँ तो लकडी का उपयोग हुआ होगा। लेकिन मेरा भ्रम यहाँ भी टूट गया। इस दरवाजे की चौखट भी पत्थर की ही निकली।
आखिरकार जहाँगीर महल से बाहर निकल ही आये। इसके मुख्य प्रवेश दरवाजा की ऊँचाई भूमि तल से एक मंजिल की ऊपर है। दरवाजे के दोनों किनारों पर पत्थर के हाथी बनाये गये है इन हाथियों को बनाने के पीछे भी संदेश छिपा है। इनमें से एक हाथी की सून्ड में जंजीर बनी है तो दूसरे हाथी की सून्ड में फ़ूलों का हार दिखायी देता है। जंजीर वाले हाथी का साफ़ संदेश है दोस्ती नहीं निभायी तो दुश्मनी झेलने को तैयार हो जाओ। फ़ूल वाले हाथी का साफ़ इशारा है कि हम आपका स्वागत फ़ूलों से करते है यदि आपको फ़ूलों से स्वागत पसन्द नहीं आया हो तो दूसरे हाथी की बात पर अमल करना हम जानते है।
जहाँगीर महल भले ही समाप्त हो गया हो लेकिन जहाँगीर महल के आश्चर्यचकित करने वाले पल अभी जारी थे। जैसा मैंने पहले कहा कि महल समतल भूमि से एक मंजिल ऊँचाई पर है। महल के दरवाजे तक पहुँचने के लिये कुछ सीढियों उतरनी पडी। इन सीढियों पर राजा के उपयोग में आने वाले घोडे, ऊँट व हाथी जैसे भिन्न-भिन्न ऊँचाई वाले जानवरों की सवारी करने के लिये अलग-अलग ठिकाने (प्लेटफ़ार्म) बनाये गये है। इनसे हाथी, घोडे या ऊँट पर सवार होने में आसानी होती थी।
जहाँगीर महल से नीचे आते ही वह अमेरिकी पुन: मिल गया जो खजुराहो से साथ आया था। वही जो होटल में साथ ठहरा था। अमेरिकी जिसका नाम पेट्रिक है सही मौके पर मिला। हमे उस समय कोई ऐसा बन्दा चाहिए था जो हम दोनों मनमौजियों का एक फ़ोटो ले सके। पेट्रिक भारत के नार्थ इस्ट की रहने वाली किसी भारतीय लडकी से शादी करने वाला है जिसने इसे हिन्दी के कुछ शब्द सिखा दिये है। अगर पेट्रिक ने पहले बता दिया होता तो वह हिन्दी के कुछ शब्द जानता है तो मुझे बेवजह अंग्रेजी की ऐसी तैसी ना करनी पडती। हमारा फ़ोटो लेने के बाद उसका भी एक फ़ोटो लिया गया। पेट्रिक का फ़ोटो सबसे आखिर में है जबकि पेट्रिक का लिया गया फ़ोटो सबसे ऊपर है। इसके बाद पेट्रिक अन्दर चला गया। जबकि हम यहाँ बचे अन्य स्थल देखने चले गये। (यात्रा जारी है।)













































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