सोमवार, 2 सितंबर 2013

Group of ancient temples-Amarkantak अमरकंटक का प्राचीन मन्दिर समूह

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-19                              SANDEEP PANWAR
नर्मदा उदगम स्थल के ठीक बराबर में बने हुए प्राचीन मन्दिर समूह को देखने के लिये पहुँच गया। इस मन्दिर के प्रवेश द्धार के बाहर ही लिखा हुआ था कि मन्दिर में प्रवेश करने का समय सुबह सूर्योदय से लेकर शाम को सूर्यास्त तक है। चूंकि मैं तो सूर्योदय के बाद पहुँचा था अत: मुझे मन्दिर समूह में प्रवेश दिये जाने से कोई परेशानी नहीं हुई। इस मन्दिर में जाने का टिकट लगता है या नहीं ऐसा कोई बोर्ड़ तो वहाँ दिखायी नहीं दिया था मैंने गार्ड़ से टिकट के बारे में पता किया भी था लेकिन उसने कहा कि महाशिवरात्रि के मेले के दौरान टिकट व्यवस्था बन्द कर दी जाती है। चलिये आपको मन्दिर के इतिहास की जानकारी देते हुए इसका भ्रमण भी करा देता हूँ।


मन्दिर के अन्दर लगे एक सूचना पट को देखने से मालूम हुआ था कि यहाँ मुख्यत तीन मन्दिर है पहला है पातालेश्वर मन्दिर, दूसरा शिव मन्दिर व तीसरा कर्ण मन्दिर है। यहाँ बने हुए सभी मन्दिर नागर शैली में बने हुए स्थापत्य है। पातालेश्वर मन्दिर का शिखर पंचरथ शैली का बना है जबकि मन्ड़प पिरामिड़ शैली की है। शिव मन्दिर का शिखर भी पंचरथ व मन्ड़प पिरामिड़ शैली का है। कर्ण मन्दिर का शिखर भी इसी शैली का बना हुआ है। वैसे तो इस मन्दिर का निर्माण कार्य आठवी सदी में ही आरम्भ हो चुका था लेकिन इस मन्दिर समूह को पूर्ण करने का कार्य सन 1043-1073 के मध्य राज्य करने वाले राजा कर्ण देव ने मंजिल पर पहुँचाया।

मन्दिर समूह में प्रवेश करते ही सबसे पहले मन्दिर का शानदार हरा भरा आंगन दिखायी देता है। मुझे मन्दिर की सुन्दरता से ज्यादा इसके हरे-भरे गार्ड़न ने लुभाया था। मन्दिर की चारदीवारी के बाहर से ही विशाल मन्दिर समूह दिखायी देता रहता है लेकिन अन्दर जाते ही मन्दिर की असली सुन्दरता दिखायी देती है। मन्दिर समूह के सभी छोटे-बड़े मन्दिर देखकर मन सोचने पर विवश होने लगता है कि देखने की शुरुआत आखिर करु तो कहाँ से करु? मैंने मन्दिर देखने से पहले इसके एक कोने में बना हुआ तालाब देखा। तालाब काफ़ी बड़ा व शायद गहरा भी है। मन्दिर में व आसपास तालाब मिलना सामान्य सी बात है। पुराने ग्रन्थों में मन्दिर व पानी के कुन्ड़ का युग्म अवश्य पाया जाता है।

वैसे तो आजकल इस मन्दिर में पूजा-पाठ नहीं होता है हो सकता है कि पुराने समय में कोई अप्रिय घटना यहाँ घटित हुई हो जिस कारण यहाँ पूजा-पाठ पर रोक लग गयी हो। मुझे तो वैसे भी पूजा-पाठ से ज्यादा मतलब रहा ही नहीं है। अपने लिये संसार के हर कण में परमात्मा अपस्थित है। अपना तो सिद्धांत यही रहा है कि अगर किसी का भला नहीं किया जा सकता है तो किसी का बुरा भी नहीं करना चाहिए। किसी का आदर सम्मान नहीं हो सकता है तो उसकी बेइइज्जती भी नहीं करनी चाहिए। अपने देखने लायक यहाँ के मन्दिर समूह में बहुत कुछ था। पहले उसी को पूरा देख ड़ालते है बाकि प्रवचन बाद में दिये जायेंगे।

मन्दिर देखने की शुरुआत करते समय सबसे पहले जिस मन्दिर में प्रवेश किया व शायद कर्ण का मन्दिर था। अब नाम तो याद नहीं है कई महीने पहले की बात है फ़ोटो में नाम आ नहीं रहा है। इस मन्दिर में भी अन्य सभी मन्दिरों की तरह मुख्य मन्दिर से सटा हुआ एक चौकोर बरामदा था उसके पीछे गर्भ-गृह था। लगभग सभी मन्दिरों में यही स्थिति थी। यह मन्दिर जमीन के धरातल के हिसाब से दो भागों में विभाजित है आरम्भिक भाग सड़क के समतल ही बना हुआ है जबकि अन्तिम भाग पहले की अपेक्षाकृत 10 फ़ुट ऊँचाई पर बना हुआ है। चलिये आरम्भिक भाग देखने के बाद आगे चलते है।

कुछ सीढियाँ चढ़ने के उपरांत ऊपरी भाग में आगमन हो पाता है। यहाँ पर एक ऐसा मन्दिर बना हुआ था जिसमें आजकल भी पूजा-पाठ हो रहा था। यहाँ इस मन्दिर को देखकर यह अंदाजा लगाने में दिक्कत नहीं हुई कि यह मन्दिर अन्य सभी मन्दिरों के मुकाबले एकदम नया बना है। जहाँ अन्य मन्दिर देखने से ही हजार साल पुराने दिख रहे थे वही यह मन्दिर देखने से ही लगता था कि यह मन्दिर मुश्किल से 100 साल पुराना भी नहीं होगा। इस नये मन्दिर से सटा हुआ एक घर जैसा भी दिख रहा था हो सकता है कि उसमें उस मन्दिर के पुजारी या उनका परिवार आदि कोई रहता होगा। वैसे इस नये मन्दिर का छज्जा भी टूट कर सरिया के सहारे लटका हुआ था।

ऊपरी हिस्से में आगे बढ़ने पर वे दो मन्दिर दिखायी देते है जो पीछे वाली पहाड़ी पर सुबह से ही दिखायी दे रहे थे। यहाँ पहुँचने पर पाया था कि लगता है कि यह दोनों मन्दिर शिखर ही यहाँ के मुख्य मन्दिर है। इन मन्दिरों के साथ ही एक अधूरा सा या तोड़ा गया मन्दिर भी दिखायी देता है। यह मन्दिर तोड़ा गया था या निर्माण कार्य करते समय बीच में अधूरा छोड़ दिया है इसका कोई प्रमाण नहीं मिल सका। इस मन्दिर के साथ ही चारदीवारी लगी हुई है जिसके पीछे वही मन्दिर दिखायी देता है जिसको पहले लेख में दिखाया जा चुका है।

इन मन्दिर के पास में चूना मिलाने की चक्की भी लगी हुई थी जिसका प्रयोग यहाँ मरम्मत कार्यों के लिये किया जाता होगा। आजकल तो सीमेन्ट का प्रयोग अधिकतर निर्माण कार्यों में होने लगा है जबकि सैंकड़ों/हजारों साल इसी चूने को मिलाकर मन्दिर, घर व महल आदि का निर्माण किया जाता था। मैंने जितने भी प्राचीन मन्दिर, महल आदि निर्माण देखे है उन सभी इसी चूने का प्रयोग पाया जाता है। चूने की उम्र भी बहुत ज्यादा है जबकि सीमेन्ट की उम्र चूने के मुकाबले बेहद ही कम है।

मन्दिर समूह के ठीक सामने नर्मदा उदगम स्थल दिखायी दे रहा था जो बार-बार कह रहा था कि जाट जी कुछ समय मेरे लिये भी निकालोगे या फ़िर इसी प्राचीन मन्दिर में पूरा दिन खोये रहोगे। नर्मदा मन्दिर की पुकार सुनकर मैंने सोचा चलो बहुत हो गया इस मन्दिर को काफ़ी अच्छी तरह देख लिया गया है अत: अब यहाँ से चलना चाहिए। कही पता लगे कि माँ नर्मदा नाराज हो जाये और कहे कि जाओ यहाँ क्यों आये? मन्दिर समूह से निपटने के बाद मैंने नर्मदा उदगम देखने का निर्णय कर लिया। यहाँ से बाहर जाते ही नर्मदा उदगम आ जाता है। वहाँ प्रवेश करने से पहले जूते-चप्पल उतारने होते है। मन्दिर के बाहर ही एक बन्दा चावल दाल माँगने के लिये बैठा हुआ था। (अमरकंटक यात्रा अभी जारी है।) 
जबलपुर यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।


अमरकंटक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

18-अमरकंटक की एक निराली सुबह
19-अमरकंटक का हजारों वर्ष प्राचीन मन्दिर समूह
20-अमरकंटक नर्मदा नदी का उदगम स्थल
21-अमरकंटक के मेले व स्नान घाट की सम्पूर्ण झलक
22- अमरकंटक के कपिल मुनि जल प्रपात के दर्शन व स्नान के बाद एक प्रशंसक से मुलाकात
23- अमरकंटक (पेन्ड्रारोड़) से भुवनेशवर ट्रेन यात्रा में चोर ने मेरा बैग खंगाल ड़ाला।

























4 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

ऐतिहासिक मन्दिरो के फोटो अच्छे लग रहे है।चक्की मे चूना पिसता था क्या ये वही चक्की हे विस्वास नही होता।इतने दिनो तक ये कैसे बची रह गई।

virendra sharma ने कहा…

क्या बात है दोस्त एक जीवंत इतिहास रख देती है कैमरे की आँख ,मुबारक आपको बहुविध जन्म दिन की भी तमाम उपलब्धियों की आदिनांक।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत सुंदर मंदिर हैं, यहाँ पर भी कोई शुल्क था क्या, व्यक्ति और कैमरे पर।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

सब कुछ निशुल्क था। हो सकता है कि महाशिवरात्रि के मेले के दौरान निशुल्क ही रहता हो, बाद में शुल्क होता होगा लेकिन उससे सम्बन्धित कोई सूचना पट दिखायी नहीं दिया।

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