बुधवार, 15 मई 2013

Karanparyag-Nandprayag-Chamoli-Gopeshwar कर्णप्रयाग-नन्दप्रयाग-चमोली-गोपेश्वर

ROOPKUND-TUNGNATH 08                                                                             SANDEEP PANWAR

रात के लगभग 8 बजे के आसपास हमने कर्णप्रयाग में प्रवेश किया। यहाँ रात में ठहरने के लिये एक विश्राम स्थल की तलाश में लग गये। पहले हमने ग्वालदम कर्णप्रयाग सड़क पर कमरे तलाशे, लेकिन इस सड़क पर कई मैरिज होम में शादी के कार्यक्रम होने के कारण कमरे खाली नहीं मिले। हमे एक बन्दे ने कहा कि आप बद्रीनाथ मार्ग पर जाओ वहाँ कमरे खाली होंगे। हमने अपनी बाइक कर्णगंगा नदी के पुराने पुल से निकालते हुए बद्रीनाथ ऋषिकेश मार्ग पर पहुँचा दी। यहाँ तिराहे के पास ही कई होटल, गेस्ट हाऊस थे जिनमें दो में बात करने पर ही हमें एक में 400 रुपये में कमरा मिल गया। कमरे की हालत बहुत ही अच्छी थी। हमारी बाइक कमरे के नीचे मुख्य सड़क पर रात भर खड़ी रही। मन में खटका सा रहा कि कोई बाइक उड़ा ना दे, लेकिन पहाड़ में अभी तक मैदान वाले चोर ज्यादा नहीं घुसे है।



हम जैसे घुमक्कड़ों के लिये यह कमरा महंगा था लेकिन दो दिन से नहाये नहीं थे इसलिये आज रात्रि सोने से पहले स्नान करना जरुरी था। पहाड़ में ठन्ड़ी के मौसम में ठन्ड़े पानी से नहाना भी एक आफ़त होती है इसलिये हमने कमरा लेने से पहले ही गर्म पानी के बारे में पता कर लिया था। इस होटल के पास सामने की दिशा में ही 300 रुपये में ही एक अच्छा कमरा मिल रहा था। लेकिन उसमें गर्म पानी की सुविधा ही नहीं थी। यह कमरा 100 रुपये महंगा था लेकिन गर्म अपनी से रात को व सुबह दोनों समय नहाकर पैसे वसूल हो गये। जहाँ हम रुके हुए थे उसके ठीक नीचे उन्होंने अपना खाने का रेस्टोरेंट भी खोला हुआ था। रात को सोने से पहले चाऊमीन खाने की इच्छा थी जो यही बनवा कर खायी गयी थी। चाऊमीन बनाने वाला बन्दा मुजफ़्फ़रनगर का ही रहने वाला था। 

रात में मनु भाई ने अपनी सारी बैटरी चार्ज कर ली थी। मोबाइल भी लगे हाथ चार्ज कर लिये गये थे। सुबह उठकर सबसे पहला काम दैनिक कार्यों से निपट नहा धोकर कमरे के ठीक ऊपर बने हुए एक पुराने मन्दिर को देखने चल दिये। मन्दिर किस का था मुझे ठीक से याद नहीं है, असलियत में मैं मन्दिरों की कथा-कहानी की गहराई के बारे में कम ही जाता हूँ। बस मन्दिर देखा, राम-राम हुई अपना कार्य समाप्त। मन्दिर देखने के बाद संगम बोले तो प्रयाग यानि कर्णप्रयाग देखने के लिये नीचे उतरने लगे। रुपकुन्ड़ की यात्रा के बाद, सीढियां चढ़ते-उतरते हुए पैरों में हल्का-हल्का दर्द हो रहा था। हम काफ़ी देर तक प्रयाग के किनारे बैठे रहे। दोनों नदियों का पानी मिलते हुए देखना एक अजीब सा रोमांच महसूस करा रहा था। यहाँ कर्णप्रयाग में पिण्ड़र नदी व अलकनन्दा नदियों का संगम होता है। संगम देखकर हमें आगे चमोली की ओर चलने का फ़ैसला किया।

कर्णप्रयाग से चमोली की ओर बढ़ते हुए, कोई 20 किमी आगे जाने पर नन्दप्रयाग नामक प्रयाग का दर्शन होता है। यहाँ हमने संगम बिन्दु पर नीचे पानी की लहरों के नजदीक जाने की परेशानी नहीं उठायी। हमने ऊपर सड़क से ही इस संगम को जी भर कर देखा था। वैसे नजदीक जाकर देखने की अलग बात होती है और दूर से निहारने की अलग बात। हमारी बाइक यहाँ से आगे चमोली की ओर चलती रही। बीच-बीच में जहाँ–जहाँ अच्छे नजारे मिलते थे हम बाइक रोककर देखने जुट जाते थे। बाइक रुकने के बाद अगर उसका फ़ोटो ना लिया तो फ़िर बाइक रोकने का क्या लाभ? चमोली पहुँचने तक मार्ग में कई अच्छे बुरे अनुभव हुए। कही पुल बनता हुआ दिखायी दिया। एक जगह तो सेना की एक गाड़ी जो खाई में गिरी हुई थी, खाई से क्रेन की मदद से निकाली जा रही थी। पहाड़ों में हर साल कई वाहन दुर्घटना ग्रस्त हो ही जाते है।

चमोली कस्बा आने के बाद हमारी यात्रा में उल्टे हाथ की ओर आने वाला मोड़ हमारे लिये बड़े काम था। अगर हम सीध चले जायेंगे तो जोशीमठ, बद्रीनाथ पहुँच जायेंगे। लेकिन चमोली से उल्टे हाथ जाने पर अलकनन्दा पुल को पार करने के बाद सबसे पहले हमें गोपेश्वर पहुँचना था। गोपेश्वर होकर ही मंड़ल चोपता, ऊखीमठ जाना था। आज की हमारी बाइक की मंजिल चोपता थी, उसके बाद हमें तुंगनाथ के लिये छोटी सी ट्रेकिंग करनी थी। चमोली से गोपेश्वर तक जोरदार चढ़ाई चढ़ते हुए हम आगे बढते जा रहे थे कि लेकिन यह क्या गोपेश्वर आरम्भ होते ही (दो किमी पहले) उल्टे हाथ पर एक अन्य सड़क जाती दिख रही थी। हम सीमित गति से आगे बढ़ते इस किनारे पर एक बोर्ड़ लगा हुआ था जिस पर लिखा था हर्बल गार्ड़न।

हमने बाइक रोक दी, मनु ने कहा क्यों संदीप भाई क्या ख्याल है? चल भाई इसे भी क्यों छोड़ा, अभी तो दिन/सुबह के 10 बजे है, यहाँ भी एक दो घन्टा लग जाने दो। बाइक का लाभ मिलना इसे ही तो कहते है। बस में भला यहाँ आने की सोची भी जा सकती है।  नहीं ना, लेकिन बाइक है तो क्या गम है चलो दो किमी दूर इस पार्क को भी देख आते है। इस सड़क पर लगातार ढ़लान मिल रही थी जिससे हम बिना गियर लगाये नीचे बढ़ते जा रहे थे। आगे जाकर हमें सड़क पर एक जगह रुकना पड़ा। यहाँ सड़क के बेचों बीच एक झरना पहाड़ की ऊँचाई से गिरकर बारिश के हालात पैदा कर रहा था। इस झरने से बिना भीग निकलना मुश्किल लग रहा था। यहाँ इस झरने के नीचे कार वाले कार रोककर कार की मुफ़्त धुलाई कर आगे बढ़ते जा रहे थे। खैर हम भी पहाड़ से सटकर निकलते हुए हम आगे बढ़ चले। (क्रमश:)   

रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग 
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील 
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर


















3 टिप्‍पणियां:

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…


धूप-छाँव से भरे दृष्यों वाले फोटो बहुत अच्छे लगे।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नदी किनारे बसती सभ्यतायें।

Sunder Pawaria ने कहा…

आज के राहुल सांकृत्यायन जी को नमस्कार

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