गुरुवार, 29 नवंबर 2012

सूर्यगढ़ पैलेस Suryagarh Palace जैसलमेर से सम जाने वाले मार्ग पर स्थित


जैसलमेर से यहाँ सम वाले रेत के टीले देखने के लिये आते समय बीच मार्ग में सीधे हाथ की ओर किसी एक जगह एक किले जैसा कुछ दिखाई दे रहा था। वहाँ एक बडा सा बोर्ड भी लगा हुआ था जिस पर लिखा हुआ था सूर्यगढ़ पैलेस। राजस्थान में तो वैसे भी जहाँ देखो, वहाँ किले या गढ़ ही गढ़ बने हुए मिल जाते है। ज्यादातर थोडा सा ऊँचाई पर स्थित किले को गढ ही कहा जाता है। तो दोस्तों आज के लेख में आपको इसी सूर्यगढ़ की सैर करायी जा रही है।

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

सैम/सम सैंड ड्यूंस sam sand dunes रेत के टीले


हम जैसलमेर में प्रिंस होटल पहुँच गये। वहाँ जाकर हमने सम/सैम रेत के टीले देखने के लिये एक कार किराये पर लेने की बात करने लगे। बातों ही बातों में होटल मालिक को यह पता लग गया कि यह दोनों बन्दे होटल व्यवसाय से जुडे हुए है। एक होटल कम्पनी में काम करता है दूसरा होटल का प्रचार नेट पर अपने लेख से जरिये करता है। आज के लेख में आपको सम के रेत के टीले दिखाये जायेंगे। लगे हाथ ऊँट की सवारी भी करायी जायेगी।

रविवार, 25 नवंबर 2012

जैसलमेर किले में राजा की व शहर में पटुवों की हवेली का कोई सानी नहीं


जैसलमेर के किले में एक घुमक्कडी भरा चक्कर लगाते समय हमने देखा कि यह किला कोई खास ज्यादा बडा नहीं है। (दिल्ली के लाल किले जैसा) लोगों से पता लगा कि पहले इस किले से अन्दर ही सारा शहर समाया हुआ था। किले के अन्दर चारों ओर घर ही घर बने हुए है। यहाँ अन्य किलों की तरह बडा सा मैदान तलाशने पर भी नहीं मिल पाया। इसी किले में आम जनता के साथ यहाँ के राजा रहते थे। किले को आवासीय बस्ती कह दूँ तो ज्यादा सही शब्द रहेगा।
राजा का महल हवेली जैसा

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

Jaisalmer Fort जैसलमेर दुर्ग (किला)


रात को बारह बजे के करीब हमारी ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर उपस्थित हो चुकी थी। हम अपने डिब्बे में सवार होकर जैसलमेर की ओर प्रस्थान कर गये। चूंकि शाम के समय ही हमने टिकट बुक किया था जिस कारण हमारी सीट पक्की नहीं हो पायी थी, हाँ इतना जरुर था कि हमारी दोनों सीटे RAC में उसी समय हो गयी थी, जब हमने बुक करायी थी। दिल्ली से यहाँ आते समय तो हम साधारण डिब्बे में बैठकर आये थे। अत: RAC टिकट मिलना भी हमारे लिये कम खुशी की बात नहीं थी। हम अपनी सीट पर जाकर बैठ गये थे। आज की रात हम आराम से सीट पर बैठकर जाने की सोच ही रहे थे, कुछ ऐसी ही बाते कर रहे थे। कि तभी टीटी महाराज भी दिखाई दे गये।


बुधवार, 21 नवंबर 2012

Jodhpur-Hotel The Gate Way जोधपुर होटल द गेट वे


हम जोधपुर महाराज का वर्तमान निवास स्थान उम्मेद भवन देखने जा रहे थे। हालांकि हम उम्मेद भवन में प्रवेश करने का तय समय शाम पाँच बजे, समाप्त होने के बाद पहुँचे थे। जैसे ही हमने जोधपुर के निर्वतमान महाराजा परिवार का वर्तमान निवास देखने के लिये, उनके भवन में अन्दर प्रवेश करना चाहा, तो वहाँ के सुरक्षा कर्मचारियों ने हमें अन्दर जाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि आप अब अन्दर नहीं जा सकते हो। हमने कोशिश की, कि शायद कुछ देर के लिये ही सही वे हमें अन्दर जाने दे, लेकिन हमारा उम्मेद भवन जाना बेकार साबित हुआ। आखिरकार हम मुख्य दरवाजे से ही दो चार फ़ोटो खींच-खांच कर वापिस लौटने लगे। वैसे तो यह भवन काफ़ी बडा बना हुआ है। इसके बारे में बताया जाता है कि एक बार यहाँ अकाल जैसी स्थिति आ गयी थी जिस कारण यहाँ के तत्कालीन महाराजा ने आम जनता की मदद के लिये अपना खजाना खोलने का निश्चय कर लिया था। चूंकि राजा बडा चतुर था वह ऐसे ही जनता पर अपना धन बर्बाद भी नहीं करना चाहता था। अत: राजा ने जनता को धन देने के लिये एक तरीका निकाल लिया था। वह तरीका आपको बताऊँ उससे पहले यह बात बता देता हूँ कि उस तरीके का परिणाम ही यह उम्मेद भवन था।

सोमवार, 19 नवंबर 2012

Hotel- Candy Rajputana and Ummed Bhawan होटल कैन्डी राजपूताना व उम्मेद भवन


रावण की ससुराल देखने के बाद हम पुन: अपने ऑटो में सवार होकर एक बार फ़िर जोधपुर शहर की ओर चल पडे थे। आज आगे की यात्रा में अब हमें तीन शानदार होटल व यहाँ के राज-परिवार का वर्तमान निवास उम्मेद-भवन जो देखना था। मण्डौर से हम सीधे होटल कैन्डी राजपूताना की ओर चल दिये थे। होटल राजपूताना इसलिये क्योंकि अपने जोडीदार कमल सिंह होटल इन्डस्ट्रीज से जुडे हुए है, जिस कारण कमल भाई का भ्रमण इस प्रकार के कई शानदार होटलों में होता रहता है। कमल भाई जिस कम्पनी में कार्य करते है वहाँ विदेशों से पर्यटक द्वारा भारत भ्रमण करने के पूरे टूर के लिये एडवांस बुकिंग आनलाईन करायी जाती है। जिस लिये कमल भाई तथा इनके कार्यालय के अन्य बन्दों का भारत भर में होटल निरीक्षण कार्य चलता रहता है। अत: ऐसे ही एक निरीक्षण कार्यक्रम में कमल सिंह नारद और जाटदेवता संदीप पवाँर का कार्यक्रम बन गया था। इस निरीक्षन कार्य का वर्णन ही आज के लेख में किया जा रहा है।

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

मन्डौर-रावण की ससुराल Mandore-Mandodri's home (wife of Rawan)


वैसे तो हम पिछले लेख में ही लंका पति महाराज रावण की ससुराल अथवा रावण की पत्नी मन्दोदरी का मायका मण्डौर पहुँच गये थे। लेकिन लेख ज्यादा लम्बा होने के कारण रावण की ससुराल नहीं दिखाई गयी थी, चलिये दोस्तों आज आपको मन्डौर के दर्शन भी कराये जा रहे है। रामायण काल को बीते हुए कई हजार साल हो चुके है अत: उस काल की कोई असली निशानी मिलने की उम्मीद तो हमको बिल्कुल भी नहीं थी। लेकिन जितना कुछ हमें दिखाई दिया उसने हमारा दिल गार्डन-गार्डन कर दिया था। मैंने बाग-बाग की जगह गार्डन-गार्डन इसलिये लिखा है कि यहाँ जिस स्थल को रावण की ससुराल कहा जाता है उसे आजकल मण्डौर गार्डन के नाम से पुकारा जाता है। पहले इसे माण्डव्यपुर कहा जाता था। यहाँ चौथी शातब्दी के एक किले के खण्डहर बचे हुए है।  अब इस स्थल का चित्रमय विवरण झेलने के लिये तैयार रहे।

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

जोधपुर में होटल लेक व्यू रिजार्ट और कायलाना उदयान Hotel lake view risort and kaylana lake, Jodhpur


इससे पहले वाले लेख में आपको किले से बाहर निकाल कर, मुख्य दरवाजे पर लाकर छोड दिया गया था, ताकि अगर किसी को जल्दी हो तो आगे भी कुछ देख आये, लेकिन कोई आगे नहीं गया,  बल्कि सभी मेरे साथ ही आगे की यात्रा करना चाहते है तो दोस्तों मैं भी आपको ज्यादा प्रतीक्षा ना कराते हुए आज जोधपुर की आगे की यात्रा दिखाने ले चल रहा हूँ। हमारी जोडी सुरसागर सरोवर देखने चल पडी। अब मेहरानगढ किले से आगे की यात्रा का वर्णन....... 

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

जोधपुर किला (मेहरानगढ दुर्ग) Jodhpur Fort, (Mehrangarh )


पिछले लेख पर आपको नागौरी दरवाजे तक लाकर किले की एक झलक दिखाकर ईशारा सा कर दिया गया था कि अगली लेख में आपको क्या दिखाया जायेगा? तो दोस्तों आज के लेख में हम चलते है, मेहरानगढ दुर्ग की ओर........ आगे चलने से पहले आपको नागौरी दरवाजे के बारे में भी थोडा सा बता दिया जाये तो बेहतर रहेगा। इतिहास अनुसार- बताया जाता है कि यहाँ के तत्कालीन महाराजा अभय सिंह ने अपने शासन काल 1724 से 1749 की अवधि में इस नागौरी दरवाजे का निर्माण कार्य कराया था। इस ओर से नागौर शहर जाया जाता था इसलिये इसका नाम नागौरी दरवाजा पड गया था। अब इस दरवाजे से आगे  दुर्ग की ओर चले चलते है।

सोमवार, 5 नवंबर 2012

राजस्थान भ्रमण- जोधपुर शहर Rajasthan trip-Jodhpur City


आज के इस लेख से पहले लेख के आखिरी में मैंने कहा था कि यह यात्रा यही समाप्त होती है, अगली यात्रा में पहाड, समुन्द्र या रेगिस्तान की किसी यात्रा पर आपको ले चलूँगा। बताईये कहाँ जाना चाहेंगे, पहाड की बाइक यात्रा, गुजरात या राजस्थान की ट्रेन यात्रा, अभी कोई सी भी यात्रा नहीं लिखी है। जिसके बारे में कहोगे वही लिख दी जायेगी। दोस्तों अपने प्रिय साथी पाठक व ब्लॉगर संजय अनेजावाणभट्ट जी ने कहा था कि बर्फ़ तो बहुत देख ली है अब एक आध यात्रा रेत की भी होनी ही चाहिए तो अपने प्रिय पाठकों की इच्छा का सम्मान करते हुए मैं राजस्थान में इसी साल के अप्रैल में की गयी अपनी जोधपुर यात्रा, मेहरानगढ किला, कायलाना उद्यान, रावण की ससुराल, या उनकी पत्नी मन्दोदरी का मायका-मन्डौर, राजा का वर्तमान निवास, जैसलमेर दुर्ग, रेत के विशाल टीले, सैंकडों साल पुराना जैन मन्दिर, रामदेवरा, पोखरण, बीकानेर किला, हजारों काले व एकमात्र सफ़ेद चूहे वाला करणी माता का विश्व प्रसिद्ध मन्दिर, सैम रेत के टीले sam dunes पर एक सुहानी रंगीन शाम विदेशी मेहमानों के साथ बितायी गयी थी। यह यात्रा इतनी शानदार रही थी कि मन करता है इसे फ़िर से कर डालूँ।

शनिवार, 3 नवंबर 2012

सुरकण्डा देवी मन्दिर, धनौल्टी, मसूरी, देहरादून, शाकुम्बरी देवी मन्दिर


आप बता सकते थे कि कार के अगले पहिये में क्या हुआ था? लेकिन कोई नहीं बता पाया इससे साबित हुआ कि लोग अंदाजा भी नहीं लगाना चाहते है। मैं आज आपको बता रहा हूँ कि कार के अगले पहिये में चालक वाली साइड में नहीं बल्कि दूसरी तरफ़ वाले पहिये में आवाज आ रही थी। जैसे ही मैंने कार रोक कर नीचे उतर कर पहिया देखने गया तो सबसे पहले मेरी नजर टायर पर नहीं गयी थी मैंने पहले तो टायर के पीछे लटकने वाली रबर को देखा कि कही यह तो टायर में रगड नहीं खा रही है। लेकिन वह टायर से काफ़ी दूरी पर थी। जैसे ही मेरी नजर टायर पर गयी तो एक बार को सिर चकरा गया क्योंकि टायर में पेंचर होने के कारण हवा बिल्कुल नहीं बची थी। कार में एक टायर स्पेयर में रहता है आगे जाने से पहले टायर बदलना जरुरी था। टायर निकालने के लिये डिक्की खोलनी पडी, वहाँ से सारा सामान जैसे पताशे का टोकरा कपडे का थैला, नारियल का थैला गाडी से बाहर निकालने पडे थे। यह सारा सामान निकालने के बाद जाकर टायर बाहर निकाला जा सका।


गुरुवार, 1 नवंबर 2012

चन्डी देवी, अन्जना देवी, नीलकंठ महादेव, ऋषिकेश, भ्रमण Chandi devi, Anjana devi, Neelkanth Mahadev,



इस यात्रा का पहला भाग यहाँ से पढे।

मैंने कार मंशा देवी पार्किंग में सही जगह देख खडी कर दी थी, जिसके बाद सामने ही दिखाई दे रहे टिकटघर से चार टिकट लेकर, हम सब ऊडन खटोले की ओर बढ चले। बच्चों के टिकट लेने की आवश्यकता ही नहीं पडी थी, क्योंकि ज्यादा छोटे बच्चों का टिकट ही नहीं लगता था। यहाँ इस मन्दिर में मैं पहले भी आ चुका था जबकि परिवार के अन्य सदस्य पहली बार ही यहाँ पर आये थे। मैंने यहाँ की पहली यात्रा पैदल की थी। आज दूसरी यात्रा उडन खडोले से की जा रही थी। उडन खटोले से उडते हुए पहाड पर चढना भी अलग ही रोमांच का अनुभव करा रहा था। जब उडन खटोला काफ़ी ऊँचाई पर पहुँच गया तो वहाँ से नीचे झाँक कर देखा तो एक बार को तो साँस, जहाँ थी वही अटक गयी सी महसूस हुई, लेकिन जल्द ही साँसों पर काबू पा लिया गया। मेरे नीचे देखने के बाद सबने नीचे देखा और शुरु में डरते-डरते बाद में सामान्य होकर रोमांच का जी-भर कर आनन्द उठाया। उडन खटोले से तीन किमी का सफ़र सिर्फ़ तीन मिनट में सिमट कर रह गया था। पैदल चढते हुए इस यात्रा को एक घन्टा लग जाता है सुना है कि आजकल पैदल मार्ग पर कुछ बाइक वाले भी मिलते है जो यात्रियों से कुछ शुल्क लेकर मन्दिर तक यात्रा भी करवा देते है।
दो रत्न
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