बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

पुत्र का पहला मुन्डन हरिदवार में


यह लेख लिखने से पहले मैं सन 2005 के अगस्त माह में बाइक से की गयी बद्रीनाथ-माणा-फ़ूलों की घाटी-हेमकुंठ साहिब-केदारनाथ यात्रा लिखना चाह रहा था, लेकिन कहते है ना, कि चाहने से कुछ नहीं होता है वही होता है जो मंजूरे परमात्मा होता है। उसी परमात्मा ने अचानक से दिमाग की घन्टी बजायी कि अरे जाटदेवता 30 अक्टूबर आज है और तुम दूसरी यात्रा लिखने जा रहे हो। 30 अक्टूबर से याद आया कि सन 2008 में इसी दिन सुबह-सुबह मैं अपने परिवार सहित सबके नाम क्रमश: संतोष तोमर + संदीप पवाँर + रीना मलिक + मणिका आर्य + पवित्र आर्य .... लिख दिये गये है। सभी नाम इसलिये लिखे है क्योंकि इसी दिन हमारा कार्यक्रम दिल्ली से चलकर हरिद्वार पहुँचकर पवित्र के जन्म के बाल गंगा तट पर उतरवाने का बनाया गया था।

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

समूह में पहली बार कैम्पटी फ़ॉल भ्रमण(कोहरे का कहर) kampty fall group tour


लोग कहते है कि घुमक्कडी में पैसे खर्च करना फ़िजूल खर्ची है लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता। दूसरी बात पैसे खर्च करके भी कोई साधु महात्मा जितनी घुमक्कडी और भी करता होगा। मुझे नहीं लगता। जबकि मैं हमेशा कहता आया हूँ कि घुमक्कडी किस्मत से मिलती है समय व पैसों से नहीं, लेकिन कई लोग ऐसे भी मिल जायेंगे जिन्हे मेरी इस बात पर भी आपत्ति होगी। ऐसे लोगों को उनके हाल पर छोड देनी में ही अपनी भलाई है। जिससे मैं अपनी मनमौजी घुमक्कडी पर लगा रहता हूँ। तो चलिये दोस्तों आज आपको अपनी ऐसी पहली घुमक्कडी के बारे में बताता हूँ जिसमें मेरे साथ कई और युवक व युवती भी गये थे। युवती के फ़ोटो मैं नेट पर लगाना नहीं चाहता हूँ अत: कोई इस बारे में कुछ ना कहे। बात सन 2003 के दिसम्बर माह के आखिरी सप्ताह की बात है। मेरी मौसी व मामा का परिवार देहरादून में ही रहता है जिस कारण वहाँ साल में दो तीन बार आना-जाना हो ही जाता है। इसी तरह उपरोक्त तिथि को मेरी मौसी की लडकियाँ जिनकी ससुराल हमारे घर से 4-5 किमी दूर ही है। मौसी की लडकियों ने फ़ोन कर मुझे बताया कि वह व उनका देवर कुछ अन्य दोस्तों के साथ मसूरी घूमने जा रहे है। अगर तुम्हे चलना है तो शाम तक बता देना, क्योंकि रात को यहाँ से चल देना है। 

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

सुरकण्डा देवी surkanda devi की बर्फ़ व उत्तरकाशी से नरेन्द्रनगर तक बारिश bike trip


वर्ष सन 2003 में फरवरी माह के आखिरी सप्ताह की बात है। कुछ दोस्तों ने कहा कि “संदीप भाई चलो महाशिवरात्रि नजदीक आ रही है कही घूम कर आते है”। मैंने कहा ठीक है चलो लेकिन मेरी एक शर्त है कि जहाँ भी जाना है, बाइक पर ही चलेंगे, अगर मानते हो तो मैं तैयार हूँ। उन्होंने कहा अरे भाई आपने तो हमारे मन की बात कह दी है, हम भी तो बाइक पर ही जाना चाहते है, लेकिन कोई साथ जाने वाला मिल ही नहीं रहा है। इसलिये तो हम आपके पास आये है। तो दोस्तों इस तरह यह बाइक यात्रा तैयार हो गयी थी। इस bike trip में कुल तीन बाइक शामिल हुई थी। जिसमें से एक बजाज की, दूसरी एलमएल की, तीसरी अपनी हीरो होंडा।


रविवार, 14 अक्तूबर 2012

उत्तरकाशी काशी विश्वनाथ से पुरानी टिहरी-ऋषिकेश-हरिद्धार-दिल्ली तक बाइक यात्रा Uttarkashi Kashi Viswnath Temple-Old Tihri-Delhi Bike trip


अगले दिन यानि तीसरे दिन सुबह-सुबह हमने उतरकाशी स्थित काशी विश्वनाथ मन्दिर के दर्शन किये। वैसे तो अब तक मैंने लगभग बीसियों बार इस मन्दिर में दर्शन कर लिये है, लेकिन हर बार ऐसा लगता है कि जैसे मैं पहली बार यहाँ आया हूँ। यह मन्दिर कई सदी पुराना बताया जाता है बताते है कि पुराने समय में जब दूर आने-जाने के साधन उपलब्ध नहीं थे, बल्कि पैदल ही लम्बी-लम्बी हजारों किमी की यात्राएं पैदल ही तय की जाती थी। उस समय काशी (वाराणसी) के विश्वनाथ मन्दिर की पूरे भारत में सबसे ज्यादा मान्यता थी, जिस कारण पहाड के लोगों को बनारस के बाबा विश्वनाथ मन्दिर में दर्शन करने के लिये लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए, उत्तरकाशी के बाबा विश्वनाथ मन्दिर की स्थापना करनी पडी थी। वैसे असली कहानी क्या है, मैं इस कहानी के चक्कर में कभी नहीं पडता हूँ। मुझे तो एक छोटा सा मन्दिर हो या मात्र शिवलिंग कही रखा हो, बस उसे देखते ही भोलेनाथ का स्मरण याद हो जाता है, बस जहाँ भोलेनाथ का स्मरण हो गया, तो समझो, अपनी पूजा-पाठ सफ़ल भी हो गयी। बडे-बडे भक्तों की तरह घन्टों बैठकर पूजा-पाठ करनी अपुन के बसकी बात नहीं है। अपुन ठहरे घुमक्कड प्रजाति के प्राणी। लगता है कि भगवान ने मुझे पूजा-पाठ करने के लिये बनाया ही नहीं है।

पुराने टिहरी शहर की एक दुर्लभ झलक

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

माताजी के साथ बाइक पर धनौल्टी-चम्बा-टिहरी-उतरकाशी-यात्रा Bike trip-Dhanaulti-Chamba-Tihri-Uttarkashi alongwith mother


इस सीरिज के अन्य भाग

बाइक पर हम दोनों कसकर बाइक पकडकर बैठे हुए थे और बाइक पहाड की तेज ढलान पर धीरे-धीरे चढने लगी। उस तेज चढाई पर बाइक का लगभग सारा जोर लग गया था। तेज ढलान पर बाइक चढाते समय कई बार ऐसा लगा था कि कही बाइक आगे से घोडे की तरह उठ तो नहीं जायेगी? लेकिन शुक्र रहा कि कोई अनहोनी घटना नहीं घटी जिससे बाइक आसानी से उस खतरनाक दिखने वाली तेज ढलाने पर चढ गयी थी। यहाँ बाइक चढाने के बाद मैंने रुककर पीछे मुडकर उस ढलान को काफ़ी देर तक निहारता रहा था। उसके बाद हम दोनों माँ-बेटा एक बार फ़िर अपने आगे की यात्रा पर बाइक पर सवार होकर चल दिये। कोई आधा किमी जाने पर एक दौराहा आता है जहाँ से सीधा जाने वाला मार्ग धनौल्टी होते हुए चम्बा की ओर जाता है। जबकि सीधे हाथ नीचे की जाने वाला मार्ग देहरादून की ओर उतर जाता है जो कुछ आगे जाने पर मसूरी की ओर भी मुड जाता है अगर कोई देहरादून से सीधा धनौल्टी जाना चाहे तो उसे मसूरी में अन्दर घुसने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उसे मसूरी के बाहर से ही धनौल्टी जाने के लिये सीधे हाथ पर तीन किमी पहले ही एक मार्ग मिल जायेगा। जहाँ से मसूरी बाई पास हो जाती है।

हम दोनों सीधे चम्बा वाले मार्ग पर चल पडे थे, यह मार्ग मसूरी से चम्बा तक पहाड के लगभग शीर्ष पर ही चलता रहता है जिससे कि मार्ग में दोनों तरफ़ के दिलकश नजारे देखते हुए कब सफ़र बीत जाता है पता ही नहीं चल पाता? हम लगभग 18-20 किमी यात्रा कर आगे ही आये थे कि एक जगह कई वाहनों की लाईन लगी देखी, पहले तो कुछ समझ नहीं आया लेकिन जब मैं bike उन वाहनों से आगे ले गया तो बात समझ में आ गयी कि यह वाहन वहाँ क्यों खडे हुए थे? उन वाहनों से आगे ले जाकर मुझे भी अपनी बाइक रोकनी पड गयी। सडक पर बर्फ़ ही बर्फ़ दिखायी दे रही थी। मैंने बाइक वही किनारे लगा कर पैदल ही आगे मोड तक, कुछ दूर तक देख कर आनी की सोची और मैं माताजी को बाइक के पास छोडकर आगे के मार्ग के हालात को देखने चल पडा था। लगभग तीन सौ मीटर जाने पर मैंने पाया कि मार्ग में हर सौ-दौ सौ मीटर के बाद लगभग 10-20 मीटर बर्फ़ पडी मिल रही थी। लेकिन बर्फ़ इतनी ज्यादा थी कि उसमें से कार भी नहीं निकल पा रही थी जिस कारण कार वाले पीछे ही रुके खडे थे।


दो मतवाले माँ-बेटे अपनी धुन के पक्के।

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

Delhi-Dehradun-mussoorie-kampty fall bike trip दिल्ली से देहरादून-मसूरी-कैम्पटी फ़ॉल बाइक यात्रा


एक कहावत है कि पूत के पॉव पालने में दिख जाते है लेकिन मैं कहता हूँ कि पालना भी तो ऐसा हो जिसमें हाथ पैर चले ताकि दिखे तो सही। चलिये कहावत को मारो गोली। आज आप सबको लेकर चलता हूँ पहाड की लगभग हजार किमी लम्बी बाइक यात्रा पर घुमा कर लाता हूँ जिसमें मेरे साथ मेरी माताजी घूमने गयी थी। क्यों क्या कहते हो? ऐसा नहीं हो सकता। चलिए इस बात का प्रमाण दिखाने के लिये एक फ़ोटो भी लगा देता हूँ नीचे देख लो। यात्रा शुरु होती है सन 2001 के फ़रवरी माह के आखिरी सप्ताह की बात है देहरादून के भन्डारी बाग में रहने वाले मेरे मामाजी चौ० हरवीर सिंह तोमर की बडी लडकी की शादी का अवसर था। हमारा परिवार सहित बुलावा आना ही था, लेकिन उस समय तक हमारा परिवार ज्यादा बडा नहीं था, हमारे परिवार में मात्र तीन प्राणी थे। मैं, मेरा छोटा भाई और हमारी माताजी, भाई तो उस समय भी उतरकाशी जनपद में तैनात था। पहले तो हम दोनों ने देहरादून में शादी समारोह के लिये बस से यात्रा करने की सोची थी, लेकिन भाई ने कहा कि नई बाइक किस काम आयेगी? बाइक लेकर शादी में आ जाओ ताकि शादी के बाद बाइक से ही आगे उतरकाशी तक आ जाना। यह बात मुझे पसन्द आ गयी थी। अत: मैने शादी में बाइक से जाने की बात माताजी को बतायी तो उन्होंने कहा कि मैं भी तुम्हारे साथ बाइक से ही जाऊँगी। उस समय हमारे पास पैसन बाइक थी जो आज भी हमारे पास है। इस बाइक ने लगभग डेढ लाख किमी से ज्यादा दूरी नाप रखी है।
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