सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

HAR KI DOON हर की दून, भाग 2

हर की दून बाइक यात्रा-
सुबह पाँच बजे का अलार्म लगाया था जिसकी जरुरत ही नहीं पडी थी क्योंकि अलार्म बजने से पहले ही आँख खुल गयी थी। धर्मेन्द्र सांगवान में भी आलसीपन नहीं था। जिससे हम दोनों समय पर नहा धो-कर तैयार हो गये व ठीक पौने छ: बजे होटल वाले को उठाया कि भाई दरवाजा तो खोल दो ताकि हम जा सके, होटल वाले को हमने रात में बता दिया था कि हम सुबह छ: बजने से पहले यहाँ से आगे चले जायेंगे। होटल के बाहर ही हमारी बाइक सडक पर खडी हुई थी, पहाडों में वाहन चोरी होने का डर बहुत ही कम होता है जिस कारण ज्यादातर वाहन रात में सडक पर खडे ही होते है, कुछ शरारती बच्चे बाइक से पेट्रोल निकाल लेते है जिस कारण यहाँ ज्यादातर बाइक में पेट्रोल टंकी पर ताला लगाया हुआ होता है अपना भी पहाड पर आना-जाना लगा रहता है अत: ये ताला मैंने भी लगवाया हुआ है। रात में बाइक पर काफ़ी ओस गिरी हुई थी जिससे कि बाइक काफ़ी भीगी हुई थी, साफ़ सफ़ाई के बाद पुरोला से आगे की यात्रा पर चल दिये।
नैटवाड में वन विभाग चैक-पोस्ट के साथ ये नक्शा बना हुआ था।

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

HAR KI DOON हर की दून, भाग 1

हर की दून बाइक यात्रा-
हर की दून जाने की इच्छा बहुत दिनों से मन में थी। दो महीने पहले श्रीखण्ड महादेव से वापस आते ही सोच लिया था कि बारिश समाप्त होते ही हर की दून के लिये कूच कर देना है, इसलिये मैंने ब्लॉग पर दिनांक भी कोई पक्की नहीं की थी। अहमदाबाद के रहने वाले धर्मेन्द्र सांगवान ने कई बार फ़ोन कर के पता किया कि जाट भाई हर की दून जा रहे हो या नहीं, उसे हर बार बताया कि अभी पहाडों में बारिश बन्द नहीं हुई है अत: कुछ समय बाद ही जाया जायेगा, लेकिन बन्दा परेशान कि आपका क्या, आप तो अपनी बाइक उठाओगे व चल दोगे लेकिन मुझे तो अहमदाबाद से दिल्ली तक आने में बीस घन्टे लग जायेंगे कुछ दिन पहले बता दोगे तो मैं अपना ट्रेन का आरक्षण करवा लूँगा नहीं तो बिना आरक्षण रेल से आने में तो ऐसी की तैसी हो जायेगी। मैंने कहा हाँ भाई बात तो तुम्हारी ठीक है चलो दशहरा वाले दिन दिल्ली से चलते है तब तक मौसम भी ठीक हो ही जायेगा। बन्दे ने फ़िर पूछा दिनांक तो पक्की है न, अरे भाई जब मैंने किसी जगह जाने की एक बार बोल दी तो फ़िर तो ऊपर वाला मेरी हर तरह से सहायता भी करता है, फ़िर किसी की मजाल की मेरी यात्रा को रोक-टोक सके, जय भोले नाथ, हर दम सबके साथ। इस यात्रा में दो बाइक सवारों का फ़ोन और आया था कि अगर आप(मैं) लोग एक दिन बाद चलो तो हम भी आपके साथ चलेंगे लेकिन मैंने कहा कि कोई बात नहीं आप लोग बाद में आओ, मुझे अपना कार्यक्रम नहीं बदलना है हाँ हो सकता है कि हम आपको पैदल मार्ग में टकरा जाये।

इस यात्रा का पहला फ़ोटो आपनी नीली परी का सडक के बीचोंबीच।

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

PANWALI KANTHA पवाँली कांठा(बुग्याल)

बुढाकेदार से पैदल यात्रा के लिये दूरी


आज आपको PANWALI KANTHA पवाँली कांठानाम के शानदार बुग्याल के बारे में बता रहा हूँ। इस दिलकश जगह पर मैं दो बार गया हूँ। यहाँ जाने के लिये दिल्ली के मुख्य बस अडडे से उतराखण्ड रोडवेज की बस घनस्याली के लिये मिलती है जो पूरी रात चलकर सुबह घनस्याली पहुँचा देती है। घनस्याली जाने के दो मार्ग है एक चम्बा नई टिहरी होते हुए व दूसरा श्रीनगर से आगे केदारनाथ वाले मार्ग की ओर, तीसरा मार्ग भी है जो कि उतरकाशी से चौरंगीखाल, लम्ब गाँव होते हुए घनस्याली तक ले जाता है। घनस्याली पहाडों के हिसाब से एक काफ़ी बडा शहर है यहाँ हर तरह की सुख सुविधा आसानी से मिल जाती है। यहाँ से आगे घुत्तू जाना होता है जिसके लिये बसे नहीं मिलती है वहाँ जाने के लिये लोकल जीप पर निर्भर रहना होता है, पहाडों में खासकर उतराखण्ड में बसों की सुविधा कम ही है, जीप के भरोसे ही यहाँ का जीवन चलता रहता है। वैसे यहाँ पर आने के लिये एक पैदल मार्ग और है जो आपको बुढाकेदार से यहाँ तक ले आता है उसके लिये पहले बुढाकेदार जाना होता है, वहाँ से बुढाकेदार दर्शन करने के बाद विनयखाल नामक जगह से होते हुए, भैरों चटटी मन्दिर के दर्शन करते हुए घुत्तू तक शाम होने तक आ सकते हो। इस मार्ग में सिर्फ़ तीन-तीन किमी के दो बार चढाई के झटके झेलने पडते है बाकि तो ढलान ही ढलान है।


ये तो आगाज है।

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

आपने क्या कहा (भाग 2)


संजय @ मो सम कौन ? said...
सॉरी भाई, एक साथ पढ़ने के चक्कर में एक-एक पोस्ट नहीं पढ़ी थी, यूँ समझ लो नीरज की तरह रपट गया था: अब एक एक पोस्ट पढ़नी पड़ेगी, लेकिन मन में उल्लास है कि पूरी तफ़सील से चौकड़ी की घुमक्कड़ी समझने को मिलेगी।
जवाब------क्रम से पढो, इस सफ़र में ना पढने में, ना ही चलने में शार्टकट ठीक नहीं है।

Vidhan Chandra said...
एक बात तो तय है की आप लोग यात्रा का मजा नहीं लेते हैं , रिकार्ड बनाने की "धुन" में रहते है!! नीरज भी कोई भगवान नहीं है ! इन्सान ही है, उसे पछाड़ने के चक्कर में अगर आप कहीं (भगवान न करे ) गिर जाते या आप को कुछ हो जाता तो? हम घुमक्कड़ हैं और उसका आनंन्द स्वयं के लिए लेते हैं , वो अलग बात है कि ब्लॉग के जरिये अपनी भावनाएं दूसरों से शेयर कर लेते हैं. बीस मिनट लेट ही सही नीरज पहुंचा न आप के पास अगर मैं होता तो एक घंटा लेट होता! अगर हमें जल्दी नहीं है तो बिना बात जल्दी क्यों करें संदीप जी !! आपके फोटो अच्छे हैं , नीरज कि सलाह मानकर फोटो वाटरमार्क नहीं किये इसके लिए धन्यवाद!!
जवाब------घुमक्कड़ तो हर तरह का मजा उठाते है कभी तेज कभी धीमे, जब सभी तेज चल सकते हो तो क्यों नहीं चले? पहले जाने वाले को आराम भी सबसे ज्यादा मिलता है। उस समय कुछ तो उन्हे उतराई की रफ़्तार भी दिखानी थी दूसरी बारिश होने का डर भी था जिससे कि मार्ग फ़िसलन भरा हो जाता, रात की बारिश ने तो वैसे ही ऐसी-तैसी की हुई थी।

मदन शर्मा said...
मैं समय न मिलने और कुछ व्यक्तिगत कारणों से बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ. बहुत सुन्दर चित्र मय प्रस्तुति  लेकिन एक बात याद रखिये ये तीर्थ स्थल हमें एक दुसरे से जोड़ने के लिए ही बनाये गए हैं देवी देवताओं की पूजा तो एक बहाना है एक दुसरे के नजदीक आने का !!

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

आपने क्या कहा (भाग 1)


chandresh kumar said...
बहुत अच्छा आगाज़ है तो अंजाम तो बहुत ही धांसू होगा. आपके लिए बस यही कहना है की हम किस किस की नजर को देखें हम तो सबकी नजर में रहते है.क्या करे दोस्त हमने तो किस्मत ही ऐसी पाई है कि हमेशा सफ़र में ही रहते हैं. आगे भी ऐसे ही जरी रखें आपकी आँखों से नीले गगन, प्रकृति का यौवन फूलों कि नाजुक कलियाँ देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है.
जवाब------जब तक इस शरीर में जान है ये घूमना लगा ही रहेगा।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...
एकाध कोई उल्टा बोल्या के नही। :)
जवाब------लठ चार-चार हाथ में हो फ़िर किसकी मजाल की कोई उल्टा बोल दे।

नीरज जाट said...
मैं पहले दिन ही दिल्ली से नारकण्डा पहुंच गया और आप बाइक होते हुए भी पिंजौर ही पहुंच सके हैं। सालों लगेंगे आपको अभी मेरी बराबरी करने में। हा हा हामुझे भी बाइक चलानी सीखने दो, फिर देखना भरपूर टक्कर मिलेगी आपको और आपके जोडीदार को। लाइसेंस तो बन गया है। खाना और सोना मेरी कमजोरी नहीं बल्कि मेरी ताकत है। जरा एक बार इस यात्रा में से खुद को हटाकर देखो, कौन भारी पडा? आप को मैं अपना फिटनेस गुरू मानना चाहता हूं। अब मेट्रो में भी एस्केलेटर की जगह सीढियों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। बढिया शुरूआत। और हां, लिंक डालना भी सीखो। जहां पहली बार मेरा नाम लिखा है, वहां ब्लॉग का लिंक लगाया करो।
जवाब------सीख लो बाइक चलानी भी, ये अच्छा किया एस्केलेटर की जगह सीढियों का इस्तेमाल, इस दुनिया में सब गुरु है कोई अपने को कम नहीं मानता है।

निर्मला कपिला said...
तस्वीर चंदाल चौकडी से शुरू हुये मगर अगली हर तस्वीर मे से एक चंडाल गायब होता रहा। सुन्दर यात्रा वृतांट। शुभकामनायें।
जवाब------क्या करते फ़ोटो खींचने के लिये कोई मिलता ही नहीं था।

प्रवीण पाण्डेय said...
उत्तरी सड़को पर धौंकती फटफटिया उतरी।
जवाब------हमारे गाँव में बाइक को फ़िटफ़िटी भी कहते है।

Vidhan Chandra said...
श्रीखंड की यात्रा कठिन है, जो आप लोगों ने सफलता पूर्वक पूरी की!! सहस के धनी आप जैसे लोग चंडाल चौकड़ी न होकर "स्वर्णिम चतुर्भुज" है!!
जवाब------चारों बेहद ही हिम्मत वाले हैं, घूमने के मामले में किस्मत वाले भी।

veerubhai said...
संदीप जाट भाई बहुत सुन्दर प्रस्तुति .नीरज भाई के ब्लॉग पर भी यह वृत्तांत पढ़ा .आपका अंदाज़-ए-बयाँ आपका अपना शानदार नज़रिया प्रस्तुत करता है .
जवाब------शानदार नज़रिया कहो या कि जो देखा जो महसूस किया वो मान लो।

Bhushan said...
बढ़िया यात्रा वृत्तांत. बिण मांग्या सुझाव सै- बाद में इसे संपादित करके पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित कर दें.
जवाब------सोच तो रहा हूँ लेकिन ऐसी तो कई पुस्तक हो जायेगी।

डॉ टी एस दराल said...
भाई ये लट्ठ लेकर यात्रा तो जाट ही कर सकते हैं। बहुत दिलचस्प ।
जवाब------नहीं जी लठ लेकर कोई भी यात्रा कर सकता है बस हिम्मत होनी चाहिए।
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