शनिवार, 15 जुलाई 2023

कर्नाटक समुद्र तट क्षेत्रों की यात्रा

संक्षेप में कर्नाटक कोस्टल यात्रा विवरण


ट्रेन से उडुपी स्टेशन उतरा तो देखा कि यहाँ स्टेशन पर डोरमेट्री में ठहर सकते है। 

मैं लोकल बस स्टैंड के ऊपर बने होटल में डोरमेट्री में 350 रु में ठहरा था। यहां रुम में 700 रु में ठहर सकते है। एकदम साफ सुधरा होटल है।


इस होटल के नीचे से मालपे बीच की सीधी लोकल बस मिलती है। जो 15 रु में मालपे बीच छोड देती है।

मैंने आवागमन इसी लोकल बस से किया था।

वापसी भी लोकल बस से ही लोकल बस अड्डे आ जाये।

लम्बे रुट के लिए अलग बस अड्डा है जो मालपे बीच जाते समय 1 किमी दूर आता है।

उडुपी स्टेशन से लोकल बस अड्डा 3.5 किमी दूर है। वैसे मैं पैदल टहलता चला आया था।

आटो वाले शेयरिंग में 50 से कम नहीं लेते। प्रीपेड वाले 200 रु लेते है। 

वैसे स्टेशन से 1 किमी पैदल चलकर हाइवे पर आ जाये तो फिर मात्र 10/15 रु में 2.5 किमी दूर लोकल बस से लोकल बस अड्डे पहुंच सकते है।

लोकल बस स्टैंड से उडुपी श्री कृष्ण मठ आधा पौन किमी दूर है।

मैं अपना सामान डोरमेट्री में रखकर खाली हाथ केवल मोबाइल पैसे लेकर मठ में आया था।

मंदिर में ड्रेस कोड लागू है पुरुषों को कमीज शर्ट निकाल कर दर्शन करने होते है। लेकिन जबरदस्ती नहीं, इच्छा पर है।

मंदिर में प्रसाद लडडू व पंचरत्न प्रसाद लेकर खाया गया।


उडुपी से अगला पडाव मुरुडेश्वर महा विशाल शिव मूर्ति व महा विशाल गोपुरम है।

उडुपी नये बस स्टैंड से लम्बी दूरी की बस चलती है। 

मैं भी यहां से लम्बी दूरी वाली बस में भटकल के लिए बैठा था। वैसे जिस बस में मैं बैठा था वो सिरसी होकर हुबली जा रही थी।

भटकल बस स्टैंड से मुरुडेश्वर मंदिर तक हर आधे में बस चलती रहती है।


मुरुडेश्वर का समुद्र तट प्रवेश मानसून में बंद था। तो लिफ्ट से गोपुरम के 18 वी मंजिल तक रु 20 के टिकट ने यात्रा करा दी। 

लिफ्ट के अलावा ऊपर सीढियों से पैदल जाने का विकल्प दिखाई नहीं दिया।

वापसी में सीढियों से उतरने का मार्ग भी बंद था तो लिफ्ट से नीचे उतर मंदिर दर्शन किये। 

मंदिर प्रसाद के दो लड्डू खरीद कर खाये गये।


शिव जी की विशाल मूर्ति के नजदीक से दर्शन किये।

मूर्ति के नीचे बनी गुफा में 20 रु के टिकट को लेकर देखा गया।


तीन घंटे मुरुडेश्वर में व्यतीत कर होनावूर जाने वाली बस में सवार हो गया।

होनावूर से दूसरी बस दोपहर डेढ बजे मिली। जिसने दो घंटे में जोगफाल उतारा। 

जोगफाल देखकर जोगफाल में ही रात्रि विश्राम की इच्छा थी।

लेकिन जोगफाल में थ्री स्टार होटल में रुम बहुत महंगा था। एक किमी दूर गाँव में अकेले को रूम दे नहीं रहे थे तो ज्यादा सिरदर्द न पालते हुए फिर से होनावूर की बस में सवार हो गया।


होनावूर में रात्रि विश्राम के लिए एक रुम रु 500 में मिला। बस स्टैंड के पास दो तीन ही होटल है। ज्यादा बेहतरीन तो नहीं कह सकते।

साफ सफाई ठीक थी।


वैसे मुझे आगे कुमटा या गोकर्ण पहुंच कर रात्रि विश्राम करने की कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन अंधेरा हो गया था तो रिस्क न लेना बेहतर लगा।

सुबह 7 बजे होनावूर से कुमटा की बस में सवार हो गया।

कुमटा से सीधे गोकर्ण की बस हर आधे घंटे में चलती रहती है।

कुमटा से बस से उतरा ही था कि सामने गोकर्ण की बस तैयार खडी थी।


गोकर्ण पहुंच बस स्टैंड पर पेट पूजा की गयी।

रात्रि विश्राम गोकर्ण में ही करना था। तो मंदिर दर्शन करता हुआ 1 किमी दूर समुद्र तट पहुंच गया।

गोकर्ण में मंदिर दर्शन के लिए ड्रेस कोड अनिवार्य है। लुंगी के बिन जा नहीं सकते।

लुंगी मंदिर के बाहर दुकानों पर 60/80/100 रू में अपनी पसंद अनुसार ले लीजिए।

वैसे मेरे पास हमेशा रहती है।


समुद्र तट पहुंच कर सीधे हाथ एक सवा किमी चलता गया। यहां एक जगह 500 रू में शानदार डोरमेट्री समुद्र किनारे मिल गयी।

अपना सामान डोरमेट्री में पटक समुद्र किनारे घंटों बैठ समुद्र का आनंद लेता रहा।

बारिश आयी तो डोरमेट्री में लेट गया। दोपहर बाद फिर से समुद्र किनारे डेरा डाल दिया।


वापसी के लिए गोकर्ण स्टैंड से कुमटा जाने वाली बस से गोकर्ण रेलवे स्टेशन के मोड पर उतर जाये।

मैं वापसी गोकर्ण बस स्टैंड से नहीं आया था।

मैं सुबह उठते ही पैदल ऊँ बीच पहुंच गया था।

वहां से समुद्र किनारे पत्थरों व जंगल से होता हुआ हाफ मून व पैराडाइज बीच और न जाने कहाँ कहाँ जंगलों से पार करता हुआ। एक दूसरे गाँव Tadadi जाकर निकला था। वहां से तादरी तक पैदल आया। तो तादरी से गोकर्ण जाने वाली रोड तक एक स्कूटी वाले से लिफ्ट ली। गोकर्ण रोड से एक टैम्पों ट्रेवलर में सवार हुआ। उसे 50 रू किराये के दिये।

गोकर्ण रेलवे स्टेशन का नाम गोकर्ण रोड है। जो गोकर्ण से लगभग 10 किमी दूर है।


मुझे गोकर्ण रोड स्टेशन से वास्कोडिगामा जाना था।

एक ट्रेन से मडगांव पहुंच गया।


मडगांव से वास्कोडिगामा वाली ट्रेन 5 मिनट पहले निकल गयी तो पैदल स्टेशन पर सीधे हाथ पूर्व साइड 5 मिनट चलकर मुख्य सडक पर पहुंच गया। यहां से लोकल बस से 2.5 किमी दूर मडगांव बस स्टैंड उतरा।


मडगांव बस स्टैंड से गोवा में चारों तरफ की लोकल व लम्बे रुट की बस मिलती है। जैसे पणजी, वास्कोडिगामा, आदि रुट 

मैं यहां मडगांव से कदम्बा बस सर्विस वालों की शटल बस सेवा में सवार हो वास्कोडिगामा पहुंच गया।


शटल बस में कंडक्टर नहीं होता, केवल ड्राइवर होता है। बीच में सवारी बैठाई नहीं जाती। केवल उतरा जा सकता है।


वास्कोडिगामा घूमकर शाम को मडगांव वापसी रेल द्वारा की गयी।

(वैसे मेरा वापसी का टिकट तीन दिन बाद का था। लेकिन दिल्ली में घर की स्थिति न्यूज चैनलों अनुसार खतरनाक लग रही थी।)

मडगांव से दिल्ली का टिकट तत्काल में बुक कर दिल्ली प्रस्थान किया गया।

दिल्ली में अपना घर वजीराबाद में यमुना नदी के बहाव से एक किमी दूरी पर है।

न्यूज चैनलों को मोबाइल पर देखकर लग रहा था कि यमुना का पानी दिल्ली को बहा ले जायेगा।

यमुना के डूब क्षेत्र में खेतों में रहने वाले गैर कानूनी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण वाले ही हर साल अपनी झुग्गियों के डूबने पर सडकों पर आकर टैंटों में डेरा जमाते रहते है जिसे मीडिया वाले दिल्ली बाढ में डूब गयी, डूब गयी कहकर खूब दिखाते है।

लेकिन दिल्ली पहुंच स्थिति सामान्य लगी।

कुछ निचले क्षेत्रों में अवश्य यमुना का पानी भर गया है। 

दिल्ली में यमुना नदी का पानी आबादी में फैलने से रोकने के लिए 1978 की बाढ के बाद जो तटबंध बनाये गये है। उनसे दिल्ली सुरक्षित रहती है।


अब दिल्ली के नाले जो कीचड़ वाली गाद लाकर यमुना में डालते है उससे यमुना की गहराई कम होती जा रही है।

जिससे पानी स्वयं ज्यादा ऊंचा स्तर दिखाता है।


खैर अपनी यात्रा मस्त रही।


सोमवार से फिर से कलम वाली सरकारी मजदूरी आरम्भ हो जायेगी।

मिलेंगे अगले महीने नयी यात्रा पर कहीं न कहीं....

सोमवार, 19 जुलाई 2021

Deeg palace Jal Mahal- Bharatpur, Rajasthan डीग जल महल, भरतपुर, राजस्थान

दोस्तों मथुरा भरतपुर यात्रा का यह अंतिम लेख है। 
आपने करीब तीन साल पहले इस यात्रा के अन्य सभी लेख पढ़े थे। चूंकि तीन वर्ष से लिखने का मन नहीं हो रहा था तो यह यात्रा आगे नहीं लिखी गयी थी। कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ के चिरमिरी में रहने वाले श्रीपत राय भाई ने फोन पर विशेष जोर दिया कि पुनः लिखना शुरू कीजिए।
लगातार लिखना कहाँ तक सम्भव हो पायेगा? यह तो अभी नहीं कह सकता! 
इसलिए पुनः लेखन में सबसे पहले बची हुई मथुरा भरतपुर यात्रा का यह लेख पूरा कर रहा हूँ।

इस यात्रा में सबसे पहले हम वृंदावन के दर्शनीय स्थल घूमे थे। वृंदावन में घूमने के बाद हम मथुरा के कुछ अन्य क्षेत्र घूमे जिनके यात्रा लेख आप सब पहले पढ़ चुके हो। अब उससे आगे चलते है।

यूपी के मथुरा का भ्रमण के बाद हमारी टोली राजस्थान में प्रवेश कर गयी। बहुत वर्षों से भरतपुर महाराजा सूरजमल का निवास स्थान "डीग का जल महल" देखने की प्रबल इच्छा थी। सबसे पहले जल महल पहुंच गए। 

इस यात्रा के दौरान हमारी टीम ने यहां जमकर धमाल मचाया। पहले तो हमने महल देखा। महल तो मुश्किल से आधे घंटे में देख लिया गया। 
मुख्य द्वार से प्रवेश करते समय महल के अंदर एक हरा-भरा पार्क देखा था। इस पार्क को देखकर हम सबके मन में दबे हुए कबड्डी के खिलाड़ी बाहर निकल आए। 
यहां, हमने लगभग एक घंटा जमकर कबड्डी खेली। हमारी हमारी घुमक्कड़ टीम दो भागों में विभाजित हो गयी।
सुबह के के चौधरी भाई के फार्मेसी कालेज में हमारी टीमों ने बैडमिंटन व वालीबाल में धमाल मचाया ही था।
डाक्टर अजय त्यागी यहां रैफरी बने थे। खिलाड़ी बनकर कबड्डी में दबने से अच्छा रैफरी बनना रहा।

इस महल में देखने के लिए बहुत सारे स्थान हैं। महाराजा सूरजमल का निजी कक्ष सबसे शानदार लगा। यहां महाराजा सूरजमल जिस पलंग पर सोया करते थे। वो भी देखा। एक पत्थर की छत देखी। तब लैंटर तो बनते नहीं थे।
अन्य कर्मचारियों के रहने के स्थान और महल के दोनों तरफ पानी से भरे हुए जलाशय आज भी पानी से भरे रहते है। जिनके कारण इस महल का नाम जल महल पड़ा था। पानी के ऊपर से जो हवा के झोंके आते थे। वह ठंडे होते थे। जिस कारण महल में जून के महीने में भी गर्मी महसूस नहीं होती। इस महल में एक जगह महाराजा सूरजमल का दरबार लगता था। उसके ठीक बराबर में यहां पर एक शेर का पिंजरा था। जिसमें एक शेर पिंजरे में रखा जाता था। 
यह महल दिल्ली के लाल किले से भी शानदार है जिसने दिल्ली का लाल किला या आगरा का लाल किला देखा है। वह इंसान इसे देखेगा तो यह स्थान उन दोनों किलों से शानदार लगेगा। किले पर आजादी के बाद लगातार कांग्रेसी शासन रहने के कारण रखरखाव न होने के कारण बहुत सारे स्थान ढहने की अवस्था में पहुंच चुके हैं। 
इसका कारण यह था कि यहां के महाराजाओं के वंशज का आजादी के बाद से ही कांग्रेसी सरकारों से हमेशा विरोध रहता था। हो सकता है यहां के महाराजा कांग्रेस के नेताओं को अंग्रेजों के दलाल मानते हो। इस रंजिश के कारण आज से तीस साल पहले एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने यहां के तत्कालीन राजा को सार्वजनिक रूप से भरतपुर में पुलिस से गोली चलवा कर मरवा दिया।
भारत के अंधे लचर पचर कानून का ढोंग देखिए कि उस मुकदमे का निर्णय 35 साल बाद 2020 में जाकर हो पाया। अब तक लगभग सभी आरोपी स्वयं की मृत्यु पा चुके थे। एक दो जो बचे भी है वो 80/85 साल के हो चुके है। राजनीति बडी गंदी चीज है। 

खैर, महल बहुत शानदार है कभी भी घंटे दो घंटे का मौका मिले तो इस महल को देखने अवश्य जाये। यह स्थान महापुरुष श्रीकृष्ण की जन्म भूमि मथुरा के पास है और गोवर्धन पर्वत के तो बहुत ही नजदीक है। अपनी गाडी हो तो आधा घंटे से भी कम समय में यहां पहुंच जायेंगे। यहां से भरतपुर ज्यादा दूर पड़ता है गोवर्धन पर्वत नजदीक पड़ता है। इसलिए इस स्थान को देखने का मौका कभी न छोडा जाए। 

डीग के जल महल में जल महल तो आश्चर्यजनक है ही और जल महल के अंदर बहुत कुछ देखने लायक है। जो आप इन फोटो में नहीं देख सकते। यहां आकर यहां के पार्क महल आदि सब कुछ देख सकते हैं। महल में सिर्फ राजा के शयनकक्ष वाले भाग में फोटो खींचने की रोक है। अन्यथा आप पूरे महल में कहीं भी फोटो और वीडियो बना सकते हैं। यहां काफी सारे पार्क भी हैं।

इस महल में एक हनुमान जी का मंदिर भी है। आप मंदिर के दर्शन करने के बहाने मंगलवार को या सुबह सुबह बिना टिकट के भी जा सकते हैं। वैसे भी यहां का टिकट बहुत ज्यादा महंगा नहीं है। शायद 5 या ₹10 का यहां का टिकट है। उसमें आप यहां का संग्रहालय भी देख सकते हो। इस महल के ठीक सामने में डीग का विशाल किला भी है। जिसे दुर्ग कहते हैं यह भी भरतपुर वाले दुर्ग की तरह अजय रहा है। कहते हैं सिर्फ एक बार यह दुर्ग दो-तीन महीने के लिए आक्रमणकारियों के अधीन चला गया था अन्यथा इस पर भरतपुर के शासकों का ही अधिपत्य रहा है।

डीग के किले में कोई टिकट शुल्क नहीं है। वहां आप सुबह 9:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक जा सकते हैं। दुर्ग में जाने पर आपको एक बुर्ज ऊंचाई पर एक महा विशाल तोप रखी मिलेगी। जो भारत की सबसे बड़ी मुख्य तीन चार तोप में शामिल है। ऐसी एक तोप तो जयपुर के किले में भी बताई जाती है ऐसी ही एक तोप मैंने महाराष्ट्र के मुरुड जंजीरें किले में भी देखी थी। मुरुड जंजीरा किला समुद्र के अंदर बना हुआ है।

डीग के किले में बुर्ज के ऊपर रखी विशाल तोप से इस जल महल की सुरक्षा की जाती थी। उस तोप के कारण इस महल पर आक्रमणकारियों का हमला करने की हिम्मत नहीं होती थी। किसी भी तरह की सेना हो इस तोप के कारण वह दूर हट जाती थी। चलिए अब हम भी 1 घंटे की कबड्डी खेल कर और अपने पसीने सुखाकर यहां से अपने अपने घर की ओर चलते हैं। 

चलने से पहले थोडी जानकारी डीग के बारे में जान लीजिए।
डीग राजस्थान के भरतपुर जिले का एक प्राचीन शहर रहा है। इसका प्राचीन नाम दीर्घापुर था। भरतपुर यहां से 32 किमी दूर है। महाराजा बदन सिंह ने डीग को भरतपुर शासन की पहली राजधानी बनाया था। भरतपुर के जाट-राजाओं के बनवाये महल तथा अन्य भवन अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं। महाराजा बदन सिंह ने 18 वीं सदी में मिश्रित शैली में डीग के भवनों की योजना तैयार की और उस योजना को महाराजा सूरजमल ने साकार रूप दिया।
महाराजा सूरजमल दुर्ग, महल एवं मंदिर निर्माण व मुगलों से लडाई करने में ज्यादा व्यस्त रहे। भरतपुर और डीग के आधुनिकतम महलों के निर्माण में भी उनका ही योगदान रहा। डीग में अपने पिता के समय के बने महलों से अलग सूरजमल ने फव्वारों जलाशय के साथ आधुनिक सुविधा युक्त महलों का निर्माण भी करवाया।

तो दोस्तों यह तो थी डीग बनने की कहानी। हम वापस अपने यात्रा वृत्तांत पर लौट आते है।

अभी हम सब एक साथ वापसी में सीधे मथुरा जा रहे है। मथुरा में हमें यह गाडियां छोड देनी है। 
मथुरा पहुंच कर एक दूसरे को बाय बाय कहने व अलग अलग चलने से पहले आइसक्रीम पार्टी का आनंद लिया गया। 
आइसक्रीम पार्टी के बाद जयपुर सीकर वाले साथी अनिल बांगड व उनके दोस्तों ने रोडवेज बस पकड ली। 
डाक्टर त्यागी अपनी बाइक से आये थे।
वो अपनी बाइक से लौट गये। 
मैं अनिल दीक्षित के साथ उनकी गाडी में आया था। वापसी में दीक्षित भाई को नींद आ रही थी तो मैंने यमुना एक्सप्रेस वे पर दिल्ली बार्डर तक गाडी चलायी।
दिल्ली आते ही अनिल दीक्षित को गाडी का हैंडल दे दिया गया।
बस अडडे के सामने पहुंचे तो उजाला हो चुका था। यहाँ सडक किनारे भीड लगी थी। पता लगा कि किसी बाइक सवार को हार्टअटैक आ गया है वह बाइक पर ही खत्म हो गया था।
पुलिस वाले बाइक वाले के पास आ चुके थे। बाइक वाले को देखा, वह जान पहचान का नहीं लगा। पुलिसकर्मियों के आने से हमारा वहां कोई काम नहीं था।

हम अपने अपने घर पहुंच गये। नहा धोकर नौकरी पर भी तो जाना था। 
दोस्तों, जल्दी ही किसी यात्रा के साथ पुनः आने की कोशिश रहेगी।(यात्रा समाप्त)





















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